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जन्म कुंडली में राजनीतिक सफलता का शुभ योग
जन्म कुंडली में राजनीतिक सफलता का शुभ योग
Dosh Nivaran

जन्म कुंडली में राजनीतिक सफलता का शुभ योग 

राजनीति में पूर्ण रूप से सफल वही व्यक्ति हो सकता है जिसकी जन्म कुंडली में कुछ विशेष धन योग, राजयोग तथा कुछ अति विशिष्ट ग्रह योग हों। क्योंकि एक सफल राजनेता को उचित सत्ता, सम्मान, सफलता, रुतबा, धनबल, संपत्ति आदि सब कुछ अनायास ही मिल जाता है। अतः एक सफल राजनेता की कुंडली में विशिष्ट ग्रह योगों का पूर्ण त्याग होना अति आवश्यक है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में तभी सफल होगा जब कुंडली में मौजूद ग्रह योग उसका पूर्ण समर्थन करेंगे। आइए देखें कि ऐसे कौन से ग्रह योग हैं जो किसी जातक को सफल राजनेता या राजनीतिज्ञ बना सकते हैं।

एक सफल राजनेता बनने के लिए राजनीतिक कारक ग्रह सभी नौ ग्रहों का त्याग करना आवश्यक है लेकिन फिर भी सूर्य, मंगल, गुरु और राहु राजनीति में सफलता प्रदान करने में सशक्त भूमिका निभाते हैं। साथ ही चंद्रमा का शुभ और पक्ष में होना भी जरूरी है।

सूर्य ग्रह सरकारी राजनीति में सफलता, नेतृत्व एवं पराक्रम का कारक ग्रह मंगल है। गुरु पारदर्शी निर्णय क्षमता एवं विवेक शक्ति प्रदान करता है। वहीं ज्योतिष में राहु को बल, साहस, शौर्य, पराक्रम, छल और राजनीति का कारक माना गया है। अत: यदि ये चारों ग्रह कुंडली में बलवान एवं शुभ हों तो एक सशक्त, प्रभावी कार्यशील, लड़ाकू एवं प्रतिभावान व्यक्तित्व की नींव पर पूर्णतः सरल एवं सशक्त राजनेता का निर्माण करेंगे जिस पर राष्ट्र को सदैव गर्व रहेगा।

राजनेता बनने के लिए आवश्यक तत्व

ज्योतिष संबंधी भाव मुख्यतः विवाह, तृतीय, चतुर्थ, पंचान, षष्ठ, नवम और एकादश होते हैं। विवाहित व्यक्ति और व्यक्तित्व है विवाह प्राप्तकर्ता है। तृतीय भाव सेना, चतुर्थ भाव जनता, पंचम भाव राजसो ठाटबाट और मंत्री पद, षष्ठ भाव युद्ध और कर्म, नवम भाव भाग्य, दशम भाव कार्य व्यवसाय, राजनीति और एकादश भाव लाभ भाव। दृढ़ व्यक्तित्व, जनमत संग्रह, शक्ति, जनता का पूर्ण समर्थन, सफलता, पैसा और मंत्री पद के गुण ये सभी राजनेता बनने के लिए आवश्यक तत्व हैं। साथ ही जब इन भावों का संबंध लाभ भाव से बनेगा तो ऐसे विशिष्ट ग्रह समुदाय वाला कुण्डली बाला जातक राफल राजनीतिज्ञ बनेगा।

राजनीतिक क्षेत्र में सफलता

सूर्य एवं राहु बली होना चाहिए। दशमेश स्वगृही हो या लग्नस्थ या चतुर्थ भाव में हो।

दशम भाग्य में पंचमहापुरुष योग होना चाहिए तथा उस स्थान पर विवाह का त्याग करना चाहिए तथा दशम भाग्य पर सूर्य का भी प्रभाव होना चाहिए

गुरु एवं शनि, राहु द्वितीय एवं पंचम भाव में शुभ हों। त्रिकोणेश और दोनों धनेश अष्टम या द्वादश भाव में हों।

कुंडली में 2, 5 और 8 भाव में सूर्य, गुरु, शनि, राहु और मंगल बली हों। कुंडली में परिवर्तन होना चाहिए और इसका संबंध केंद्र या त्रिकोण से होना चाहिए।

यदि दशमेश मंगलवार को 3, 4, 7, 10 भाव में स्थित हो।

यदि सबसे बली सूर्य बृहस्पति, शनि और मंगल 1, 6, 9 और 10 भाव में स्थित हों।

यदि 1, 5, 9 तथा 10 भावेश स्वामियों का किसी भी रूप में कोई सम्बन्ध हो।

दसवां भाव मजबूत होना चाहिए। अर्थात यह भावना किसी भी रूप में कमजोर नहीं होनी चाहिए। जैसे दशम भाव में कोई भी ग्रह नीच का नहीं होना चाहिए, भले ही नीच भंग हो तथा त्रिकेश दशम भाव में नहीं होना चाहिए।

यदि जन्मपत्रिका में तृतीय या चतुर्थ ग्रह बली हो अर्थात उच्च, स्वग्रही या मूल त्रिकोण हो तो जातक मंत्री या राज्यपाल पद पाने में सफल होता है।

जिस जातक के 5 या 6 ग्रह बलवान अर्थात उच्च, स्वग्रही या मूल त्रिकोण में होते हैं वह जातक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी राज्य पर शासन करने में सफल होता है।

त्रिकोण भाव में पाप ग्रह मंगल, शनि, सूर्य, राहु केतु स्थित हों।

जब विवाह गजकेसरी योग के साथ शुभ हो या इन तीनों में से दो ग्रह मेष लग्न में हों। यदि पूर्णिमा या आसपास का चंद्रमा सिंह नवांश में हो और शुभ ग्रह केंद्र में हो।

यदि कोई ग्रह नीच राशि में न हो या नीच राशि भंग हो तथा गुरु और चंद्र केंद्र में हों और उन्हें शुक्र देखें।

गुरु और शनि का लग्न अर्थात धनु, मीन, मकर, कुंभ में मंगल उच्च का हो तथा चंद्रमा धनु राशि के 15 अंश तक सूर्य के साथ हो।

यदि सौम्य ग्रह अस्त (बुध, गुरु, शुक्र, चंद्रमा) तथा नवम भाव में न हो तो मित्र ग्रहों से युक्त होता है तथा चंद्रमा मीन राशि में स्थित हो तो मित्र ग्रह के रूप में देखता है।

अग्नि तत्व लग्न अर्थात 1, 5, 9 लग्न तथा मित्र ग्रह की दृष्टि हो।

शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबंध बनाये और दशम भाव में भी शुभता हो।

सूर्य, चंद्र, गुरु और बुध दूसरे भाव में, मंगल छठे भाव में, शनि 11वें और 12वें भाव में, राजनीति तो विरासत में ही मिली है।

यदि कुंडली में तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च या स्वगृही हों और वे केंद्र या त्रिकोण में हों तो सोने पर सुहागा होता है।

चाहे वह मंगल हो, सूर्य हो या दसवें भाव में उसका प्रभाव हो।

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