गोचरवाश जब शनि मीन राशि में आएगा तब साढ़ेसाती का प्रथम चरण प्रारंभ हो जाता है और शनि के वृषभ राशि में जाने तक यह रहता है क्योंकि शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक विराजमान होता है। जब शनि मीन राशि में होता है तब साढ़ेसाती का प्रथम चरण प्रारंभ हो जाता है, मीन राशि में शनि मेष से द्वादश भाव में होता है, तब आया की तुलना में व्यय अधिक होता है, तथा अनावश्यक चीज पर खर्च अधिक होता है, अपने कार्य व्यवसाय में जातक बार बार लापरवाही करता है, तथा हर संभव प्रयास करने पर भी वह अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार नहीं पाता, चाहकर भी उसे लाभ के बजाय हानि ही हाथ लगती है। वह चाहकर भी सही निर्णय नही ले सकता, जिसके कारण उसकी मानसिक मनोधारणा नकारत्मकता बढ़ जाता है। अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों का जातक शिकार हो जाता है, रोग अधिक पीड़ा पहुंचाते है, जातक को अपस्मार, उन्माद, सन्नीपात, जैसी समस्याओं से अधिक कष्ट होता है, जातक जितना अधिक प्रयास अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए करता है, उतना ही उसका खर्च बढ़ जाता है अपव्यय होता है। वह उल्टे सीधे कार्य में व्यय कर बहुत पछताता है। अपने किए हुए कार्यो का पश्चाताप करता है। घर परिवार में कलह का वातावरण उसे अधिक व्यवथित करता है। उनके मित्र उनका साथ छोड़ देते है तथा उससे प्रतिशोध लेने का हर संभव प्रयास करते हैं। मित्रता के अभाव तथा परिवार के असहयोग के कारण जातक विक्षुब्ध होकर व्यवसायों में पड़कर अपना स्वयं का नुकसान कर लेता है।स्वभाव में चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट बढ़ जाती है। अनिद्रा का रोग लग जाता है व्यवसायों से अधिक धन हानि होती है। जातक व्यर्थ इधर उधर भटक कर समय बरबाद करता है, उनका जो भी शुभता रहता है वह अशुभता में बदल जाता है दया, प्रेम, परोपकार, आनंद मोह ,करुणा से दूर का भी संबंध नहीं रखता, अलास्यता अधिक उत्पन्न हो जाता है, परिवार से कष्टों का सामना करना पड़ता है, शनि की साढ़ेसाती में राशि वाले जातक को आंखो से संबंधित समस्या भी उत्पन्न हो जाती है, उसे अपनी आजीविका चलाने के लिए घर से अलग होना पड़ता है, तथा प्रवासी बनकर जीवन यापन करना पड़ता है यदि शनि के साथ सूर्य मंगल या राहु केतु आदि की युति हो तो जातक का एक्सीडेंट भी हो सकता है। उसे अस्त्र, शस्त्र, अग्नि नुकीली चीज से सतर्क रहना चाहिए, तथा वह सरकार के कोप का भी भाजन बन सकता है। इतना होने पर भी वह जातक उच्चाधिकारियों का विश्वाश जीत लेता है अपने व्यवहार से खोई हुई बाजी अंततः जीत लेता है जीवन में जब द्वितीय या तृतीय साढ़ेसाती आती है तो सुख की प्राप्ति की आशा की जा सकती है। जातक अपने कार्यों के प्रति हतोत्साहित हो जाता है साढ़ेसाती के प्रभाव के कारण पेट व पसली में दर्द रह सकता है। व्यापार व्यवसाय में अत्यधिक नुकसान का सामना करना पड़ता है। परंतु शनि यदि जन्मकुंडली में अच्छी स्थिति में है तो इन सब अशुभता में कमी आती है और यदि शनि खराब स्थिति में है तो यहकार्यों के प्रति हतोत्साहितकार्यों के प्रति हतोत्साहित होता है। जातक का अत्यधिक कर्ज बढ़ जाता है। तथा हर प्रकार से समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है।
credit- ज्योतिषाचार्य विक्की विजय तिवारी
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