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परिवर्तिनी “वामना” एकादशी कथा महात्म्य
परिवर्तिनी एकादशी व्रत
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परिवर्तिनी “वामना” एकादशी कथा महात्म्य 

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी नाम से जाना जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 17 सितंबर दिन शुक्रवार को है। पुराणों के अनुसार, चातुर्मास में शयन के दौरान भगवान विष्णु इस दिन करवट लेते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत और पूजन करने पर सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

परिवर्तिनी ( वामना ) एकादशी महात्म्य –

युधिष्ठिर बोले – हे प्रभु ! भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और उसका कौन देवता , क्या विधि तथा क्या पुण्य है वह सब मुझसे कहिये ॥१ ॥
श्रीकृष्ण बोले – हे राजन् ! यह एकादशी बड़े पुण्यवाली तथा स्वर्ग और मोक्षको देनेवाली है । वामना इसका नाम है और यह सब पापों को दूर करनेवाली है। ॥ २॥
हे नृप ! इसके महात्म्य सुनने से ही पाप नष्ट हो जाते हैं। ॥ ३॥
मनुष्योंके लिए इससे अधिक फल वाजपेय यज्ञ का भी नहीं है। एकादशी का उत्तम व्रत पापियों के पापोको नष्ट करनेवाला है। ॥ ४ ॥
हे राजन् ! यह मोक्षको देनेवाली है। इसलिए मोक्षकी इच्छा करनेवाले मनुष्य को इसका व्रत को करना चाहिये। ॥ ५॥
वैष्णव और मेरे भक्त जिन मनुष्योंने भाद्रपद महीनेमे वामनजी का पूजन किया है , उन्होंने मानो तीनों लोकों की ही पूजा की है। ॥ ६ ॥
पूजा करनेवाले मनुष्य भगवान के समीप वास करते हैं , इसमे कोई संदेह नहीं है । जिन्होंने कमलनयन भगवान् वामनजी की कमलोंसे पूजा की है। ॥७ ॥

तथा भाद्रपद के शुक्ल पक्ष मे एकादशी का व्रत किया है। उसने संपूर्ण जगत् की तथा ब्रह्मा , विष्णु , महेश तीनों सनातन देवताओं की भी पूजा की है।॥ ८॥
हे राजन् ! इसलिए हरि व्रत अवश्य करना चाहिए । इसके करने पर तीनों लोकों में और कुछ करने के लिये शेष नहीं रहता। ॥ ९ ॥
इस एकादशी में सोये हुए भगवान् करवट लेते हैं । इसलिए सब मनुष्य इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। ॥ १० ॥
युधिष्ठिर बोले – जनार्दन ! मुझे बड़ा भारी संदेह है उसे आप सुनिये । हे देवताओं के स्वामी ! तुम कैसे शयन करते हो और किस प्रकार करवट लेते हो।॥ ११ ॥

और हे देवदेवेश ! बलि नाम के दैत्य ने क्या किया। और १२॥
चातुर्मास्यमें व्रत करनेवाले मनुष्योंके लिये कौन व्रत और क्या विधि है । हे जगतके स्वामी !॥ १३ ॥
हे प्रभो ! यह विस्तार से कहकर मेरा संशय दूर करो । श्रीकृष्ण बोले – हे राजन् ! पापों को हरने वाली सुन्दर कथा को सुनो ॥ १४ ॥
हे नृप । पहले त्रेतायुगमें बलि नामका एक दैत्यं था । मुझमें श्रद्धा रखता हुआ वह मेरा भक्त बलि ॥ १५ ॥
अनेक प्रकारके जप तथा सूक्तोंसे नित्य मेरो पूजा करता था । तथा नित्य ब्राह्मणोंका पूजन और यज्ञादि क्रियाओंको करता था ॥ १६ ॥
परन्तु उसने इन्द्रसे द्वेष करके देवलोक को जीत लिया था । जब उस दानव बलिने मेरा दिया हुआ इन्द्रलोक जीत लिया ॥ १७ ॥
तब यह देखकर सब देवता इकट्ठे होकर सलाह करने लगे कि हम सब मिलकर जगतके प्रभु भगवान् के समीप चलें और उनसे सब हाल कह सुनावें। ॥ १८॥

इसके बाद इन्द्र देवता और ऋषियोंके साथ मेरे पास आए। इन्द्रने पृथ्वी पर मस्तक लगाकर सूक्तोंसे मेरी स्तुति की ॥ १ ९ ॥
और देवताओंके सहित बृहस्पतिने बहुत प्रकारसे मेरी पूजा की । फिर मैंने वामन रूप धारण करके पाँचवाँ अवतार लिया ॥ २०॥
और फिर सब ब्रह्माण्डमें फैलने वाले अतिप्रचण्ड रूपसे मैंने उस सत्य प्रतिज्ञा वाले दानव को बालक स्वरूप से ही जीत लिया। ॥ २१॥
युधिष्ठिर बोले – हे देवताओंके स्वामी ! आपने वामन रूप से उस दानवको कैसे जीत लिया । यह बात मुझे अपने भक्तसे विस्तारपूर्वक कहिये ।। २२ ॥

श्रीकृष्ण बोले मैंने ब्रह्मचारीका रूप धारण करके बलिसे प्रार्थना की कि तुम मुझे केवल तीन पग भूमि दे दो,वही मुझे त्रिभुवनके समान है ॥ २३ ॥
हे राजन् ! इसमें विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है। मेरे ऐसा कहनेपर राजाने तीन पग भूमि दानमे दे दी। ॥ २४ ॥
संकल्प करते ही मेरा त्रिविक्रम शरीर बहुत बढ़ गया। मैंने भूलोक ( पृथ्वी ) पर अपने चरण किये और भुवालोकमें जंघा ॥ २५॥
स्वर्गलोकमें कमर , मह – लोकमे उदर , जनलोक मे हृदय और तपलोकमें कण्ठको रखा ॥ २६ ॥

और सत्यलोकमे मुख स्थापित करके उसके ऊपर शिर रख लिया। उस समय चन्द्र , सूर्य आदि ग्रह और योगो के सहित नक्षत्रगण || २७॥
तथा इन्द्रके सहित देवता , और शेप आदि नाग ये सब , वेदसे उत्पन्न अनेक सूक्तोसे मेरी स्तुति करने लगे ॥ २८ ॥
इसके बाद मैंने बलि का हाथ पकड़कर कहा कि मैंने एक पगसे तो पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। ॥ २६ ॥
हे पापरहित ! अब तीसरे पगको रखनेके लिए स्थान दो । मेरे ऐसा कहनेपर बलिने अपना मस्तक दे दिया ॥ ३० ॥

और मैंने उसके मस्तकपर अपना तीसरा चरण रख दिया। उस समय हे राजन् ! मेरी पूजा करने वाला वह दानव पाताल में भेज दिया गया। ॥ ३१ ॥
फिर जब बलि को विनयसे नम्र देखा तो मैं [ जनार्दन ] उस पर प्रसन्न हुआ और मैंने कहा कि हे राजा बलि ! हे मान देनेवाले । मैं निरन्तर तेरे पास रहूँगा ॥ ३२ ॥
भाद्रपदके शुक्ल पक्षमें होनेवाली परिवर्तिनी एकादशी को ॥ ३३ ॥
पातालमें मेरी एक मूर्ति बलि का आश्रय लेकर रहती है। दूसरी समुद्र में उत्तम क्षीरसागर में शेषनागकी पीठपर स्थित रहती है ॥ ३४ ॥
जबतक कार्तिक आता है तबतक हृषीकेश भगवान् शयन करते हैं । उनके शयनसमयमें जो पुण्य ( सुकृत ) होता है वह सब पुण्यदाताओंमें उत्तम होता है। ॥ ३५ ॥

हे राजन् ! इसलिए महापुण्यवाली , पवित्र और पापोंको दूर करने वाली इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। ।। ३६ ॥
इस एकादशी के दिन सोये हुए भगवान् करवट लेते हैं। इस एकादशीमे तीनों लोकों के पितामह भगवान् का पूजन करना चाहिए ।। ३७ ।।
इसमे दही का दान और चावलों के साथ चांदी का दान करने। तथा रात्रिमें जागरण करनेसे मनुष्य मुक्तिको प्राप्त होता है। ॥ ३८ ॥
हे राजन् ! जो इस प्रकार एकादशीका कल्याणकारी व्रत करता है । उसके लिए यह सब पापों को हरनेवाला और मुक्तिको देनेवाला है ॥ ३ ९ ॥
तथा व्रत करनेवाला मनुष्य देवलोक जाकर चन्द्रमा के समान शोभित होता है। जो मनुष्य इस पापोंको हरनेवाली सुन्दर कथाको सुनता है वह हजार अश्वमेध यज्ञके फलको प्राप्त करता है। ॥ ४० ॥

। इति श्रीस्कन्दपुराणे भाद्रपदशुक्लपरिवर्तिन्यैकादशीमाहात्म्यं समाप्तम् ।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत –

इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु के वामन अवतार को ध्यान करते हुए उन्हें पचांमृत (दही, दूध, घी, शक्कर, शहद) से स्नान करवाएं। इसके पश्चात गंगा जल से स्नान करवा कर भगवान विष्णु को कुमकुम-अक्षत लगायें। वामन भगवान् की कथा का श्रवण या वाचन करें और दीपक से आरती उतारें एवं प्रसाद सभी में वितरित करें और व्रत रखें। इस दिन भगवान विष्णु के मंत्र ‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’’ का यथा संभव जाप करें। विष्णु सहस्रनाम पाठ करे। एकादशी के दिन भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी की पूजा करने से इस जीवन में धन और सुख की प्राप्ति तो होती ही है। इस एकादशी के दिन चावल, दही एवं चांदी का दान करना उत्तम फलदायी होता है।

post credit – Rahul Veer Kumar

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