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दसम भाव, कुंडली का सबसे बलवान भाव
भाव बहुत ही महत्वपूर्ण होता है
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दसम भाव, कुंडली का सबसे बलवान भाव 

दसम भाव
सबसे बली केंद्र। केंद्र में सबसे बली दसम भाव। मतलब कुंडली का सबसे बलवान भाव दसम हो गया। अब ये दसम भाव लग्न पे अपना सीधा प्रभाव डालता है। यू कहे की दृष्टि डालता है। तो दसम भाव का हमारे ऊपर सीधा प्रभाव होता है।
इसी भाव मे सूर्य ठीक 12 बजे आसमान में ऊपर रहता है। कर्म का भाव जो है। सब कुछ हमारे जर्मो के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है। इन्ही कर्मो की वजह से जीव का चक्र घूमता रहता है। जन्म पे जन्म लेते रहते है हम।
कर्म करेंगे क्या वो ये भाव सीधा सीधा दर्शा देता है। दशमेश बता देगा कि क्या कर्म करने के लिए पैदा हुए है। कर्म करना क्या है। षष्टेश बताएगा पिछले जन्म में क्या कर्म किये थे । कैसे किये थे। दशमेश बता देगा क्या करना है इस जन्म में।
दसम में बैठे ग्रह भी बोलेंगे की हम भी सहयोग करेंगे।
दसम पे द्रष्टि डालने वाले ग्रह भी कर्म के भागीदार होंगे।
सप्तम में बैठा ग्रह भी कर्म का कर्म होगा।
द्वितीय षष्टम तो इसके त्रिकोणेश होंगे।
दशमेश का नवांश पती मुख्य न्यायाधीश होगा कर्म निर्धारण का।
दशमांश कुंडली मे लग्न लग्न अधिपति की स्थिति बताएगी की कर्म किस तरह के है। स्थिति क्या है कर्म क्षेत्र की। दशमांश में दसम भलव ओर भावेश भी बताएंगे कि क्या क्या कर्म कर सकते है।
द्रेष्काण कुंडली बताएगी की कर्म फल क्या होगा। खट्टा। मीठा या खारा।
तो दसम भाव। भावेश। दसम वे द्रष्टि दलालने वाले ग्रह। त्रिकोण केंद्र के ग्रह। सप्तम भाव। दशमांश ओर द्रेष्काण कुंडली। दशमेश का नवांशपति। भाव कारक ये सब मिलकर आपके कर्म क्षेत्र का निर्धारण करेंगे।
भाव कारक को तो हम भूल ही गए सूर्य आत्म सम्मान। में सम्मान। प्रत्यक्ष में। सूर्य को साक्षी मानकर ही तो हम कर्म करते है। गुरु हमे विवेक शक्ति से कर्म करने की प्रेरणा देगा। बुध हमारी बूद्धि को नियंत्रित करता रहेगा कि ऐछे कर्म करो वरना फिर अगले जन्म में छिपकली न बनना पड़े। शनि तो निर्णय क्षमता है जो कहेगा कि सोच समझ कर ऐछे कर्म करो ताकि फिर निर्वाण की यात्रा चालू हो सके। तो इसीलिए सूर्य, शनि, बुध, गुरु दसम भाव के कारक ग्रह बन गए।
सूर्य मंगल इस भाव मे दिग्बली होते है। सूर्य यहां शुभ का बैठा हो तो माँ सम्मान दिलाता है खूब। पिता को भिंख़ूब पैसे दिलाता है। मंगल तो पराक्रमी योद्धा बनाता है। कुलदीपक का चिराग बनाता यही।
राहु तो इस भाव मे सबसे बलि होता है। यहां बिअथ राहु जातक को सरस्वती कृपा प्रदान करता है। क्या जबरदस्त सोशल सर्किल बनवाता है। शतरंज का माहिर खिलाड़ी बनाता है। वृषभ। मिथुन। कन्या। कुम्भ का राहु हो तो कहने ही क्या।
एकादश इसका धन है। द्वादश इसका पराक्रम। लग्न इसका सुख। द्वितीय इसकी विद्या। तृतीय इसका रोग। चतुर्थ इसका प्रतिद्वंदी। पंचम इसकी आयु। षष्टम इसका भाग्य। सप्तम इसका ककर्म। अष्टम इसका लाभ। भाग्य इसका नाश।
अब यहां गोर कीजिये त्रिक भाव इसके लिए सबसे शुभ है। एक इसका पराक्रम है। एक भाग्य और एक लाभ। मतलब ये त्रिक लग्न को हानि पहुंचा कर कर्म को उंगली करते है कि अब अगला जन्म लो। अभी कहा रुकना है।

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