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तुलसीदास जी अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी गये !!!!
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तुलसीदास जी अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी गये !!!! 

मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्नमन से अंदर प्रविष्ट हुए ।जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही निराश हो गये ।विचार किया कि यह हस्तपाद विहीन देव हमारा इष्ट नहीं हो सकता ।बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये ।सोचा कि इतनी दूर आना ब्यर्थ हुआ ।क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपाद विहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है? कदापि नहीं ।

Ramji Gallery - Banwasi Ram Mandir (Shree Ram Charitable Trust)

रात्रि हो गयी, थके-माँदे, भूखे-प्यासे तुलसी का अंग टूट रहा था ।अचानक एक आहट हुई ।वे ध्यान से सुनने लगे ।

अरे बाबा !

तुलसीदास कौन है?

एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था ।तभी आप उठते हुए बोले –‘हाँ भाई ! मैं ही हूँ

तुलसीदास ।’

बालक ने कहा, ‘अरे ! आप यहाँ हैं ।मैं बड़ी देर से आपको खोज रहा हूँ ।’बालक ने कहा -‘लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है ।’

तुलसीदास बोले –‘कृपा करके इसे बापस ले जायँ।

बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, ‘जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ’ और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप अस्वीकार कर रहे हैं ।कारण?

तुलसीदास बोले, ‘अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता ।फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूँ, यह मेरे किस काम का? ‘

बालक ने मुस्कराते हुए कहा, बाबा ! आपके इष्ट ने ही तो भेजा है ।

तुलसीदास बोले -यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता ।

बालक ने कहा कि अपने श्रीरामचरितमानस में तो आपने इसी रूप का वर्णन किया है —

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।

कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ।।

आनन रहित सकल रस भोगी।

बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।

अब तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी।नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे ।थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि मैं ही राम हूँ ।मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है ।विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है ।कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना ।

तुलसीदास जी ने बड़े प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया ।प्रातः मंदिर में उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण एवं जानकी के भव्य दर्शन हुए।भगवान ने भक्त की इच्छा पूरी की।

जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान ‘तुलसी चौरा’ नाम से विख्यात हुआ ।वहाँ पर तुलसीदास जी की पीठ ‘बड़छता मठ’ के रूप में प्रतिष्ठित है।

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