विश्वकर्मा जयंती
विश्वकर्मा जयंती पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है यह दिन भारतीय संस्कृति में खास महत्व रखता है, क्योंकि भगवान विश्वकर्मा को निर्माण, सृजन और वास्तुकला का देवता माना जाता है। खासकर कारीगर, इंजीनियर, तकनीकी पेशेवर और उद्योग जगत से जुड़े लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं।
महत्व
भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्माण्ड का प्रथम इंजीनियर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने देवताओं के लिए स्वर्ग, अस्त्र-शस्त्र, और विभिन्न नगरों का निर्माण किया। द्वारिका नगरी, पुष्पक विमान और इंद्र का महल उन्हीं की रचनाएँ मानी जाती हैं। विश्वकर्मा जयंती पर लोग अपने औजारों, मशीनों, और कार्यस्थल की पूजा करते हैं ताकि वे सृजनशीलता, समृद्धि और सफलता प्राप्त कर सकें।
शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)
विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं जिसे ‘कन्या संक्रांति’ भी कहा जाता है। पूजा का शुभ समय प्रातः 7:30 बजे से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक है। कन्या संक्रांति का मुहूर्त खास माना जाता है, इसलिए इस दौरान पूजा करना शुभ माना जाता है।
पूजा विधि (Pujan Vidhi)
- स्नान और शुद्धिकरण: पूजा करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान की तैयारी: पूजा के लिए कार्यस्थल, औजारों और मशीनों की सफाई करें और एक साफ जगह पर विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- आसन: भगवान को साफ वस्त्र पर बिठाएं और चावल, फूल, अक्षत, और दूर्वा से पूजा प्रारंभ करें।
- धूप और दीप प्रज्वलन: धूप और दीपक जलाकर भगवान विश्वकर्मा की आराधना करें।
- पूजा सामग्री अर्पण: भगवान को फूल, फल, मिठाई, नारियल, सुपारी, पान, सिंदूर और हल्दी अर्पित करें।
- औजारों की पूजा: काम में आने वाले औजारों और मशीनों पर हल्दी-कुमकुम लगाकर पूजा करें।
- हवन: अगर संभव हो, तो हवन करें और पूजा के अंत में आरती गाएं।
- प्रसाद वितरण: पूजा के बाद सभी को प्रसाद बांटें।
पूजा सामग्री (Pujan Samagri)
- भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र
- फूल (खासकर गेंदे के फूल)
- अक्षत (चावल)
- दूर्वा (घास)
- धूप-दीप
- फल, मिठाई
- नारियल
- पान, सुपारी
- हल्दी, कुमकुम, सिंदूर
- गंगाजल
- हवन सामग्री (अगर हवन किया जाए)
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। उन्होंने ब्रह्माण्ड की रचना में महत्वपूर्ण योगदान दिया और देवताओं के विभिन्न आवासों, अस्त्रों-शस्त्रों का निर्माण किया। एक कथा के अनुसार, द्वारका नगरी, जो भगवान कृष्ण की नगरी थी, उसे भी भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। इसके अलावा, पुष्पक विमान, जो रावण के पास था और बाद में भगवान राम को मिला, भी विश्वकर्मा जी की ही देन थी। उनके द्वारा निर्मित हर वस्तु अद्वितीय और दिव्य मानी जाती है।
इस प्रकार, विश्वकर्मा जयंती तकनीकी और निर्माण क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए एक खास अवसर है जब वे भगवान से प्रेरणा, सफलता और सृजनशीलता की प्रार्थना करते हैं।
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