जानिए आखिर कौन थे श्री कृष्ण के 6 भाई

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जानिए कौन थे श्रीकृष्ण के छह भाई

By pavan

April 12, 2024

यदुवंश में शूरसेन नाम के एक पराक्रमी क्षत्रिय हुए। उनकी पत्नी का नाम मारिषा था। उनके दस पुत्र हुए। वसुदेवजी उनके सबसे श्रेष्ठ पुत्र थे। इनका विवाह देवक की सात कन्याओं से हुआ। वसुदेवजी की पौरवी, रोहिणी, भद्रा, मदिरा, रोचना, इला और देवकी ये सात पत्नियां थीं। महाराज उग्रसेन के एक भाई थे, उनका नाम देवक था। देवकीजी उन्हीं की पुत्री थीं देवकीजी के आठ पुत्र हुए: कीर्तिमान्, सुषेण, भद्रसेन, ऋृजु, सम्मर्दन, भद्र, संकर्षण तथा आठवें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण।

वसुदेव देवकीजी की सुभद्रा नाम की एक कन्या भी थी। कंस देवकीजी का चचेरा भाई था। ये कंस से छोटी थीं। देवकीजी के छ: पुत्रों को जन्म होते ही क्रूर कंस ने एक एक करके मार दिया। देवकीजी के सप्तम गर्भ को महामाया ने वसुदेवजी की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इसलिए इनका नाम ‘संकर्षण’ पड़ा। आठवें पुत्र के रूप में स्वयं भगवान विष्णु ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया।

कारागार में वसुदेव देवकीजी के सामने जब  भगवान श्री विष्णु चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए तो उन्होंने कहा, देवी स्वायम्भुव मन्वन्तर में आपका नाम पृश्नि था वसुदेवजी सुतपा नाम के प्रजापति थे।

तुम दोनों ने देवताओं के बारह हजार वर्षों तक कठिन तप करके मुझे प्रसन्न किया। क्योंकि तुम दोनों ने तपस्या, श्रद्धा और प्रेममयी भक्ति से अपने हृदय में निरन्तर मेरी भावना की थी, इसलिए मैं तुम्हें वर देने के लिए प्रकट हुआ। मैंने कहा कि तुम्हारी जो इच्छा हो सो मुझसे माँग लो, तब तुम दोनों ने मेरे जैसा पुत्र मांगा। उस समय मैं ‘पृश्निगर्भ’ के नाम से तुम दोनों का पुत्र हुआ। फिर दूसरे जन्म में तुम हुईं अदिति और वसुदेव हुए कश्यप। उस समय भी मैं तुम्हारा पुत्र हुआ। मेरा नाम था ‘उपेन्द्र’। शरीर छोटा होने के कारण लोग मुझे ‘वामन’ भी कहते थे। तुम्हारे इस तीसरे जन्म में भी मैं उसी रूप में फिर तुम्हारा पुत्र हुआ हूं। इस प्रकार अनेक बातें बताकर विष्‍णु ने समझाया और माता देवकी के कहने से बालरूप धारण कर लिया।

विष्णुरूप भगवान श्रीकृष्ण की आठ पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। उक्त सभी पत्नियों से दस दस पुत्रों का जन्म हुआ।

उपरोक्त सभी में से प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध और अनिरुद्ध के पुत्र वज्र का ही वंश आगे चला। वज्र से ही ब्रजमंडल बसा है।