किसी व्यक्ति की कुंडली उसके जीवन का अाईना होता है। जन्म के वक्त ग्रहों की स्थिति और दशा के अाधार पर ही कुंडली का निर्माण होता है। अंगारक योग, चांडाल योग, विष योग, वैधव्य योग, अल्पायु योग, ग्रहण योग, दारिद्र्य योग अादि कुछ ऐसे योग हैं जो जीवन में दुख के कारण बनते हैं। जन्म कुंडली में 2 या इससे अधिक ग्रहों के मेल से योग का निर्माण होता है। घातक योग का पता चलते ही यथा शीघ्र उनका निवारण कर लेना चाहिए, ताकि अनिष्ट को टाला जा सके। यहां हम कुंडली के अशुभ योग और उनके निवारण के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
अंगारक योग
कुंडली में मंगल का राहु या केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो अंगारक योग का निर्माण होता है। इस योग के परिणामस्वरुप व्यक्ति अाक्रामक हो जाता है। रिश्तेदारों से उसके संबंध बेहतर नहीं होते। वह अशांत रहता है। काम में परेशानी होती है।
अल्पायु योग
कुंडली में अल्पायु योग होने पर व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट के बादल मंडराते रहते हैं। कुंडली में चन्द्र ग्रह, पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या फिर लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तब अल्पायु योग बनता है।
चांडाल योग
कुंडली में चांडाल योग हो तो व्यक्ति के शिक्षा, धन और चरित्र की स्थिति डांवाडोल होती है। इसका असर व्यक्ति के चरित्र पर सबसे ज्यादा दिखता है। जब कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु या केतु विराजमान होते हैं, तब चांडाल योग का निर्माण होता है। व्यक्ति बुजुर्गों का निरादर करता है। पेट और सांस संबंधी रोग भी होते हैं।
वैधव्य योग
शादी के तुरंत बाद या कुछ समय बाद विधवा हो जाना वैधव्य योग होता है। जब कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी मंगल हो और इस पर शनि की तृतीय, सप्तम या दशम दृष्टि पड़े तो वैधव्य योग का निर्माण होता है।
दारिद्र्य योग
इस योग के होने से जीवन भर अार्थिक स्थिति खराब रहेगी। जब कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 या 12वें घर में स्थित हो तो दारिद्र्य योग बनता है।
विष योग
शनि और चंद्र की युति या शनि की चंद्र पर दृष्टि पड़ना विष योग होता है। यदि कुंडली में 8वें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक लग्न में हो तो भी यह अशुभ योग बनता है। इस योग से व्यक्ति को जीवन भर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे माता को भी परेशानी होती है।
केमद्रुम योग
कुंडली में चंद्रमा के कारण केमुद्रुम योग बनता है। कुंडली में चंद्रमा दूसरे या बारहवें भाव में होता है और चंद्र के आगे-पीछे के भावों में कोई ग्रह न हो तो यह योग बनता है। इस योग के कारण व्यक्ति को आजीवन धन की परेशानी झेलनी पड़ती है।
ग्रहण योग
कुंडली के किसी भाव में चंद्रमा और राहु या केतु साथ बैठे हों तो ग्रहण योग बनता है। इसमें सूर्य भी साथ हो जाए व्यक्ति की मानसिक स्थिति खराब हो जाती है। नौकरी और स्थान में बदलाव होता है। मानसिक पीड़ा और मां को भी हानी होती है।
गुरु-चांडाल योग
जब कुंडली में गुरु के साथ राहु भी मौजूद होता है, तब चांडाल योग बनता है। इस योग को गुरु चांडाल योग भी कहा जाता है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव शिक्षा और आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
कुज योग या मंगल दोष
कुंडली के लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या बारहवें भाव में हो तो यह कुज योग बनाता है। इसे मंगल दोष भी कहा जाता है। कुज योग से वैवाहिक जीवन कष्टप्रद हो जाता है।
षडयंत्र योग
लग्नेश आठवें घर में विराजमान हो और उसके साथ कोई भी शुभ ग्रह ना हो, तब षडयंत्र योग बनता है। इस योग के कारण व्यक्ति किसी करीबी के षडयंत्र का शिकार होता है।
भाव नाश योग
कुंडली में भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें स्थान पर बैठा हो, तो वह उस भाव के सभी प्रभावों को नष्ट कर देता है।
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