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कैंसर रोग के ज्योतिषीय कारण
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कैंसर रोग के ज्योतिषीय कारण 

ज्योतिष शास्त्र में राहु को जहर का कारक ग्रह माना गया हैं। यदि जन्मकुंडली में राहु लग्न, लग्नेश से संबंध हो जाएं या राहु कर्क राशि में पीडि़त होकर शरीर में विष की बढ़ोतरी रहती हैं।

त्रिक भावों के स्वामी जिसमें 6वें, 8वें और 12वें भाव का स्वामी जब राहु से पीडि़त हों तो यह रोग होने के योग अधिक बनते हैं।यदि बारहवें भाव में शनि और मंगल एक साथ हों या शनि व राहु की युति अथवा शनि के साथ केतु का योग बन रहा हों तो व्यक्ति को कैंसर रोग कष्ट दे सकता हैं।जन्मकुंडली में राहु की स्थिति त्रिक भाव या त्रिक भावेशों के साथ हों, या दृष्टि हों तो यह रोग हो सकता हैं।छ्ठा भाव और छ्ठ वें भाव का स्वामी पीडित हों या पापी ग्रहों के नक्षत्रों में हों तो कैंसर रोग स्वास्थ्य में कमी का कारण बनता हैं।कुंडली में बुध पीडित होने पर त्वचा कैंसर देता हैं। इसीलिए बुध क्रूर ग्रहों के साथ हो, युत व दृष्ट हो तो व्यक्ति को कैंसर रोग परेशानी दे सकता हैं।लग्न को ज्योतिष में शरीर और छ्ठे भाव के स्वामी को रोग का स्वामी कहा जाता हैं। इन दोनों का संबंध होने पर रोग अवश्य होता है।लग्न और रोग भाव में जितने अधिक अशुभ ग्रह हों जैसे राहु व शनि हों तो जातक असाध्य रोग होने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।12 लग्नों में से कैंसर रोग होने की संभावना सबसे अधिक कर्क लग्न और कर्क राशि के व्यक्तियों को ही रहती हैं।जिन व्यक्तियों की कुंडली कर्क लग्न हों, उन व्यक्तियों को गुरु ग्रह कैंसर रोग देने वाला ग्रह होता हैं।

*कैंसर रोग होने के योग* :–
यदि जन्म कुंडली में मंगल, चंद्रमा और षष्ठेश की युति हो और साथ में सूर्य भी शामिल है तब व्यक्ति को कैंसर रोग होने की संभावना बनती है.
चंद्रमा व शनि छठे भाव में स्थिति है तब व्यक्ति को पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद रक्त कैंसर हो सकता है.
जन्म कुंडली में बृहस्पति, शनि व केतु की युति कैंसर का कारण बनती है.
आश्लेषा नक्षत्र, लग्न या छठे भाव से संबंधित होने पर और मंगल से पीड़ित होने पर कैंसर होने की संभावना बनती है.
डॉ वी.बी. रमन के मत से छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह होकर लग्न में स्थित हो या आठवें भाव में स्थित हो या दसवें भाव में स्थित हो तब कैंसर रोग होने की संभावना बनती है.
शनि छठे भाव में राहु के नक्षत्र में स्थित हो और पीड़ित हो तब कैंसर रोग की संभावना बनती है.
शनि और मंगल की युति छठे भाव में आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में हो रही हो.

1.त्वचा का कैंसर | Yogas For Skin Cancer
मंगल और राहु छठे या आठवें भाव को पीड़ित कर रहे हों तब त्वचा का कैंसर हो सकता है.
छ्ठे भाव में मेष राशि हो या स्वाति या शतभिषा नक्षत्र पड़ रहा हो और शनि छठे भाव को पीड़ित कर रहा हो तब त्वचा कैंसर का रोग हो सकता है.

2.पेट का कैंसर | Yogas For Stomach Cancer
जन्म कुंडली में राहु या केतु लग्न में षष्ठेश के साथ हो.
छठा भाव पीड़ित हो और राहु या केतु, आठवें या दसवें भाव में स्थित हो.

*ज्योतिष में ये ग्रह बताते हैं , प्रस्तुत है ग्रहों की कुछ विशेष स्थितियाँ और युतियों से होने वाले रोग* :-
कैंसर:

सभी लग्नो में कर्क लग्न के जातकों को सबसे ज्यादा खतरा इस रोग का होता है|
कर्क लग्न में बृहस्पति कैसर का मुख्य कारक है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठे, आठवे, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाये व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होना लगभग तय है|
शनि या मंगल किसी भी कुंडली में यदि छठे या आठवे स्थान में राहू या केतु के साथ हों तो कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है|छठे भाव का स्वामी लग्न, आठवे या दसवे में भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना होती है|
किसी जातक की कुंडली में सूर्य यदि छठे, आठवे या बढ़ावे भाव में पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक को पेट या आंतों में अल्सर और कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है|किसी जातक की कुंडली में यदि सूर्य कही भी पाप ग्रहों के साथ हो और लग्नेश या लग्न भी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना रहती है|

कमज़ोर चंद्रमा पापग्रहों की राशी में छठे, आठवे या बारहवे हो और लग्न अथवा चंद्रमा, शनि और मंगल से दृष्ट हो तो अवश्य ही कैंसर होता है|
रोग होने की स्थिति में जन्म कुंडली के साथ नवांश कुंडली, षष्टियाँश कुंडली और अष्टमांश कुंडली का भी भली-भाँति विश्लेषण करना चाहिए उसके बाद किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए। राहु को कैंसर का कारक माना गया है लेकिन शनि व मंगल भी यह रोग देते हैं. गुरु को वृद्धि का कारक ग्रह माना जाता है और कैंसर शरीर के किसी अंग में अवांछित वृद्धि से ही होता है और साथ ही यदि यह षष्ठेश या अष्टमेश होकर पीड़ित है तब कैंसर की संभावना बनती है। योगानुसार निम्न योग कैंसर कारक हो सकते हैं…

1. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।
2. षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मे स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
3. बारहवें भाव में शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।
4. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।
5. षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।
6. बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।
7. बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है।
बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ”रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप….. अत: जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है।
8.सभी लग्नो में कर्क लग्न के जातकों को सबसे ज्यादा खतरा इस रोग का होता है|
9.कर्क लग्न में बृहस्पति कैसर का मुख्य कारक है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठे, आठवे, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाये व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होना लगभग तय है|
10.शनि या मंगल किसी भी कुंडली में यदि छठे या आठवे स्थान में राहू या केतु के साथ हों तो कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है|
11.छठे भाव का स्वामी लग्न, आठवे या दसवे में भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना होती है|
12.किसी जातक की कुंडली में सूर्य यदि छठे, आठवे या बढ़ावे भाव में पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक को पेट या आंतों में अल्सर और कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है|
13.किसी जातक की कुंडली में यदि सूर्य कही भी पाप ग्रहों के साथ हो और लग्नेश या लग्न भी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना रहती है|
14.कमज़ोर चंद्रमा पापग्रहों की राशी में छठे, आठवे या बारहवे हो और लग्न अथवा चंद्रमा, शनि और मंगल से दृष्ट हो तो अवश्य ही कैंसर होता है|
15. चंद्रमा व शनि छठे भाव में स्थिति है तब व्यक्ति को पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद रक्त कैंसर हो सकता है.
16. आश्लेषा नक्षत्र, लग्न या छठे भाव से संबंधित होने पर और मंगल से पीड़ित होने पर कैंसर होने की संभावना बनती है.
17. शनि छठे भाव में राहु के नक्षत्र में स्थित हो और पीड़ित हो तब कैंसर रोग की संभावना बनती है.
18. शनि और मंगल की युति छठे भाव में आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में हो रही हो.तो कैंसर की संभावना बनती है |
19. मंगल और राहु छठे या आठवें भाव को पीड़ित कर रहे हों तब त्वचा का कैंसर हो सकता है.
20. छ्ठे भाव में मेष राशि हो या स्वाति या शतभिषा नक्षत्र पड़ रहा हो और शनि छठे भाव को पीड़ित कर रहा हो तब त्वचा कैंसर का रोग हो सकता है.
21. जन्म कुंडली में राहु या केतु लग्न में षष्ठेश के साथ हो तो पेट का कैंसर हो सकता है |
22. छठा भाव पीड़ित हो और राहु या केतु, आठवें या दसवें भाव में स्थित हो तो पेट का कैंसर हो सकता है |
23. यदि किसी जातिका की कुण्डली में लग्नेश अष्टम, षष्टम अथवा द्वाद्श में चला गया हो, लग्न स्थान पर क्रूर व पापी ग्रहों की स्थिति हो, चतुर्थ स्थान का अधिपति शत्रुगृही होकर पीड़ित हो, छठे भाव का अधिपति चतुर्थेश से संबंध बना रहा हो तो ऐसी स्थिति में जातिका को ब्रेस्ट कैंसर या स्तनों में बड़े विकार की संभावना प्रबल रूप से मौज़ूद होती है।
24. छठे भाव में कर्क अथवा मकर राशि का शनि स्तन कैंसर का संकेत देता है।
25. छठे भाव में कर्क या मकर का मंगल स्तन कैंसर का द्योतक है।
26. यदि छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह हो और लग्नेश आठवें या दसवें घर में बैठा हो तो कैंसर रोग की आशंका रहती है।
27. छठे भाव में कर्क राशि में चंद्रमा हो, तब भी कैंसर का द्योतक है।
28. चंद्रमा से शनि का सप्तम होना कैंसर की संभावना को प्रबल बनाता है।

इनके अतिरिक्त ज्योतिष रत्न के पाठ 24 के अनुसार—
१. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबन्ध हो एवम इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर मे विष की मात्रा बढ जाती है
२. षष्टेश लग्न ,अष्टम या दशम भाव में स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ जाती है
३. बारहवे भाव मे शनि-मंगल या शनि –राहु,शनि-केतु की युतिहो तो जातक को कैंसर रोग देती है.
४. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढाती है.

इनके अलावा निम्न बिन्दु भी कैसर रोग की पह्चान के लिये मेरे अनुभव सिद्ध है

१ षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडित या क्रूर ग्रह के नक्षत्र मे स्थित हो
२ बुध ग्रह त्वचा का कारक है अतः बुध अगर क्रूर ग्रहो से पीडित हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैसर रोग होता है
३ बुध ग्रह की पीडित या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र मे स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है

बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ” रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप..
अतः जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडित हो सकता है

कैंसर नाम की एक राशि होती है, जिसे भारतीय ज्योतिष में कर्कराशि कहते हैं । मेषादि राशिक्रम में इसका स्थान चौथा है । इसके स्वामी चन्द्रमा हैं । स्वभाव से यह चर राशि है । कालपुरुष के हृदय का प्रतिनिधित्व करती है ये राशि, फलतः जातक के हृदय से इसका विशेष सम्बन्ध माना जाता है । लग्नादि क्रम से चतुर्थ भाव को कर्क का प्रतिनिधित्व मिला है । अतः भले ही किसी जातक का जन्मलग्न कोई भी हो, उसके चतुर्थ भाव का विचार कर्करोग (कैंसर) विचार के सम्बन्ध में अवश्य करना चाहिए । साथ ही ये भी देखना चाहिए कि कर्कराशि जातक की कुण्डली में किस भाव में पड़ी हुयी, यानी कि जातक का जन्मलग्न क्या है ।

जन्मांकचक्र के चतुर्थ भाव में राहु की अवस्थिति हो, अथवा कर्कराशि पर आरुढ़ होकर राहु किसी भी भाव में विराज रहा हो तो कर्करोग होने की सर्वाधिक आशंका जतायी जा सकती है । साथ ही ये भी देखना चाहिए कि चतुर्थ भाव और इसका भावेश किसी न किसी तरह यदि राहु से प्रभावित – दृष्ट, पीड़ित हो तो कर्करोग की आशंका जतायी जा सकती है । राहु की पूर्ण दृष्टिभोग के सम्बन्ध में अन्यान्य ग्रहों से किंचित भिन्न मत पर ध्यान देना चाहिए ।

यथा—सुत मदन नवान्ते पूर्ण दृष्टिं तमस्य , युगल दशम गेहे चार्द्ध दृष्टिं वदन्ति । सहज रिपु पश्यन् पाददृष्टिं मुनीन्द्राः , निज भुवन मुपेतो लोचनांधः प्रदिष्टः ।।

(पंचम,सप्तम,नवम- पूर्ण दृष्टि, द्वितीय और दशम- अर्द्ध दृष्टि, तृतीय और षष्ठम पाद दृष्टि तथा स्वगृह(कन्या राशि पर)राहु लोचनांध होते हैं । )
चतुर्थ भावपति का नीचस्थ वा शत्रुक्षेत्रस्थ होने पर भी कर्करोग की स्थिति हो सकती है । इन स्थितियों के अतिरिक्त चन्द्रमा, शनि, मंगल, सूर्य आदि का भी गम्भीरता से विचार अवश्य कर लेना चाहिए । क्यों कि उक्त ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि आदि का सीधा प्रभाव पड़ता है रोग की स्थिति, मात्रा और अंग वा प्रकार पर । जैसे मंगल की विकृति से ब्लडकैंसर का खतरा हो सकता है । बुध की विकृति से ग्रन्थियों का बाहुल्य रहेगा इत्यादि

मुख्यतः लोग षष्ठम भाव से रोग का विचार करते हैं, किन्तु इसके अतिरिक्त प्रथम, अष्टम व द्वादश भाव का भी गहन विचार करना चाहिए । साथ ही द्वितीय एवं सप्तम भाव को मारकेशत्व प्रधान होने के कारण इनपर भी विचार अवश्य करना चाहिए । रोग की साध्यासाध्यता की जानकारी हेतु सूर्य के बलाबल का ध्यान देना आवश्यक है । प्रभावी (जिम्मेवार) ग्रह (रोगकारक) की महादशा, अन्तर्दशादि के समय रोग की उग्रता समझनी चाहिए । मारकेशत्वों के बलाबल से साध्यासाध्यता की पहचान की जा सकती है ।

समझें केंसर के उपचार और उपाय को–
जन्म कुंडली में भावों के अनुसार शरीर से संबंधित ग्रहों के रत्नों का धारण करने से रोग-मुक्ति संभव होती है। लेकिन कभी-कभी जिसके द्वारा रोग उत्पन्न हुआ है, उसके शत्रु ग्र्रह का रत्न धारण करना भी लाभप्रद होता है। इसका आकलन किसी नीम हकीम ज्योतिषी से करवाना घातक हो सकता है |जिसे बहुत गंभीर समझ हो उसकी ही सलाह इस रोग में लेनी चाहिए और ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए।
एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय मंत्र-तंत्र-यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है।क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को नहीं बदल सकते |दूध जब तक दूध है तभी तक उसे बचा सकते हैं ,दही बनने पर वह दूध नहीं हो सकता वापस |इसलिए मात्र ज्योतिषीय उपायों के बल पर बैठना घातक होगा |

तंत्र मंत्र की सीमा वहां तक है की रोगी में सकारात्मक ऊर्जा ,धनात्मक ऊर्जा बढ़ा देंगे जिससे लड़ने की क्षमता बढ़ जाए |भाग्य अगर किन्ही नकारात्मक ऊर्जा के कारण बाधित है अथवा नकारात्मक ऊर्जा रोग बढ़ा रही है तो उसे तंत्र मंत्र हटा देंगे |जीवनी शक्ति बढ़ा देंगे ,पर रोग हो गया तो उसे केवल इनसे ख़त्म करना मुश्किल है।

ज्योतिषीय उपाय ,तंत्र मंत्र के साथ अवचेतन को बल देना बेहतर होता है क्योकि अंततः सारा खेल अवचेतन को ही करना होता है अगर यह निराश हताश हुआ तो फिर न दवा काम करेगी न कोई उपाय | इन सभी के साथ-साथ औषधि सेवन, चिकित्सकों के द्वारा दी गई सलाह आदि का पालन किया जाना उतना ही आवश्यक है। तभी इसका पूर्ण लाभ उठाया जा सकता हैै। अगर समय से पूर्व किसी भी घटना या दुर्घटना के बारे में जानकारी हो जाये तो उससे बचने का हर संभव प्रयास किया जा सकता है पर दुर्घटना होने के बाद मुश्किल हो जाती है।

स्तन कैंसर के ज्योतिषीय कारण –आखिर ब्रेस्ट कैंसर होता क्यों है ??
इसका जवाब जब आप ज्योतिष से जानने की कोशिश करेंगे तो आपको आसानी होगी।
क्या स्तन कैंसर का कोई ज्योतिषीय कारण भी हो सकता है? विज्ञान इसे खारिज कर सकता है परंतु सदियों पुराने ज्योतिष शास्त्र में इस व्याधि की ओर भी संकेत किया गया है।
जातक की कुंडली के कई योग बताते हैं कि अगर वे प्रभावशाली हो जाएं तो स्तन कैंसर जैसा रोग उत्पन्न हो सकता है। जानिए कारण और निवारण के बारे में।
यदि लग्नेश स्वस्थान से आठवें, छठे या बारहवें भाव में चला गया हो एवं लग्न के स्थान पर क्रूर ग्रह बैठे हों तो, चौथे स्थान का स्वामी शत्रु के घर में विराजमान हो और छठे का मालिक चौथे से संबंध बनाए तो संभव है कि उस महिला को स्तन संबंधी कोई बड़ा रोग हो जाए। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि यदि किसी महिला की कुंडली का लग्न कमजोर हो, उस पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो अथवा वहां ऐसे ग्रह विराजमान हों जो शुभ फल देने में सक्षम न हों तो रोगी होने की आशंका प्रबल होती है।

अगर उसके साथ ही छठा भाव भी श्रेष्ठ परिणाम न देने वाला हो, चंद्र की स्थिति प्रभावी न हो तो महिला को स्तन कैंसर हो सकता है।
अगर महिला की कुंडली में छठे या आठवें भाव में कोई क्रूर ग्रह स्थित हो तो उसे असाध्य रोग होने की आशंका होती है।
वहीं चतुर्थ भाव में क्रर ग्रहों का योग सीने में दर्द एवं बड़े रोगों की ओर इशारा करता है। अगर समय रहते उनका इलाज नहीं कराया तो स्थिति बेकाबू हो सकती है।

ऐसे में रोगी महिला को अपने खानपान पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। स्वस्थ जीवनशैली की आदत डालते हुए योग, ध्यान, प्राणायाम आदि करने चाहिए। इससे वह इस स्तन कैंसर के संकट को टाल सकती है।

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Article credit – भागवत ज्योतिष सेवा संस्थान।

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