निराकार ब्रह्म शिवजी के वेद , उपनिषद , पुराण सहित अनेक धर्म ग्रंथो में विविध स्वरूप के वर्णन आते है । निराकार से साकार पंचतत्व देवताओ में रुद्र ही शिवजी का प्रधान स्वरूप है । साकार के साथ निराकार के विराट प्राकृतिक रूपो को विविध नामसे आराध किय्या गया है । शिवके सहस्त्र नाम , अष्टोत्तरशत नाम , द्वादश नाम आराध भी है पर उनमे प्रधान अष्ट स्वरूप है । इन अष्ट स्वरूप के वर्णन के साथ रचा स्तोत्र शिव अभिषेक स्तोत्र है । आदि शंकराचार्य महाराज ने शिवजी के साकार , निराकार , प्रकृताकार ओर ब्रह्माकार स्वरूप का अद्भुत वर्णन करते हुवे शिव स्तवन की रचना की है जो शिव तत्व का पूर्ण वर्णन है । शिवलिंग पर पंचोपचार पूजन के स्थान ये स्तवन , स्तोत्र , नाम स्मरण पाठ द्वारा शिवजी की प्रसन्नता प्राप्त की जाती है । विविध कार्यो को ही विविध स्वरूप पूजा गया है । महामंत्र ॐ नमः शिवाय के जाप के साथ ये स्तुति , स्तोत्र , स्तवन शीघ्र फलदायी होते है । अपनी रुचि अनुसार कोई भी नित्य पाठ करने से सारी समस्या आ स्व मुक्ति पाकर जीव शिवलोक को प्राप्त होता है ।
वैदिक ग्रंथों में भगवान शिव को विद्या का प्रधान देवता कहा गया है. हिन्दू धर्म में मान्यता है की भगवान शिव इस संसार में आठ रूपों में समाए हैं, जो इस प्रकार हैं – शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव. इसी आधार पर धर्मग्रंथों में शिव जी की मूर्तियों को भी आठ प्रकार का बताया गया है. आईए भगवान शिव के इन आठ मूर्ति रूपों के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते है.
1. शर्व – पूरे जगत को धारण करने वाली पृथ्वीमयी मूर्ति के स्वामी शर्व है, इसलिए इसे शिव की शार्वी प्रतिमा भी कहते हैं. सांसारिक नजरिए से शर्व नाम का अर्थ और शुभ प्रभाव भक्तों के हर को कष्टों को हरने वाला बताया गया है.
2. भीम – यह शिव की आकाशरूपी मूर्ति है, जो बुरे और तामसी गुणों का नाश कर जगत को राहत देने वाली मानी जाती है. इसके स्वामी भीम हैं. यह भैमी नाम से प्रसिद्ध है. भीम नाम का अर्थ भयंकर रूप वाले भी हैं, जो उनके भस्म से लिपटी देह, जटाजूटधारी, नागों की हार पहनने से लेकर बाघ की खाल धारण करने या आसन पर बैठने सहित कई तरह से उजागर होता है.
3. उग्र – वायु रूप में शिव जगत को गति देते हैं और पालन-पोषण भी करते हैं. इसके स्वामी उग्र है, इसलिए यह मूर्ति औग्री के नाम से भी प्रसिद्ध है. उग्र नाम का मतलबबहुत ज्यादा उग्र रूप वाले होना बताया गया है. शिव के तांडव नृत्य में भी यह शक्ति स्वरूप उजागर होता है.
4. भव – जल से युक्त शिव की मूर्ति पूरे जगत को प्राणशक्ति और जीवन देने वाली है. इसके स्वामी भव है, इसलिए इसे भावी भी कहते हैं. शास्त्रों में भी भव नाम का मतलब पूरे संसार के रूप में ही प्रकट होने वाले देवता बताया गया है.
5. पशुपति – यह सभी आंखों में बसी होकर सभी आत्माओं का नियंत्रक है. यह पशु यानी दुर्जन वृत्तियों का नाश और उनसे मुक्त करने वाली होती है. इसलिए इसे पशुपति भी कहा जाता है. पशुपति नाम का मतलब पशुओं के स्वामी बताया गया है, जो जगत के जीवों की रक्षा व पालन करते हैं.
6. रुद्र – यह शिव की अत्यंत ओजस्वी मूर्ति है, जो पूरे जगत के अंदर-बाहर फैली समस्त ऊर्जा व गतिविधियों में स्थित है. इसके स्वामी रूद्र हैं. इसलिए यह रौद्री नाम से भी जानी जाती है. रुद्र नाम का अर्थ भयानक भी बताया गया है, जिसके जरिए शिव तामसी व दुष्ट प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखते हैं.
7. ईशान- शिव की मूर्ति यह सूर्य रूप में आकाश में चलते हुए जगत को प्रकाशित करती है. शिव की यह दिव्य मूर्ति ईशान कहलाती है. ईशान रूप में शिव ज्ञान व विवेक देने वाले बताए गए हैं.
8. महादेव – चन्द्र रूप में शिव की यह साक्षात मूर्ति मानी गई है. चन्द्र किरणों को अमृत के समान माना गया है. चन्द्र रूप में शिव की यह मूर्ति महादेव के रूप में प्रसिद्ध है. इस मूर्ति का रूप अन्य से व्यापक है. महादेव नाम का अर्थ देवों के देव होता है. यानी सारे देवताओं में सबसे विलक्षण स्वरूप व शक्तियों के स्वामी शिव ही हैं.
रुद्राभिषेकस्तोत्र :-
ॐ सर्वदेवताभ्यो नम :
ॐ नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च ।
पशूनाम् पतये नित्यमुग्राय च कपर्दिने ॥१॥
महादेवाय भीमाय त्र्यम्बकाय च शान्तये ।
ईशानाय मखघ्नाय नमोऽस्त्वन्धकघातिने ।।२॥
कुमारगुरवे तुभ्यम् नीलग्रीवाय वेधसे ।
पिनाकिने हिवष्याय सत्याय विभवे सदा ।।३॥
विलोहिताय धूम्राय व्याधायानपराजिते ।
नित्यनीलिशखण्डाय शूलिने दिव्यचक्षुषे ॥४॥
हन्त्रे गोप्त्रे त्रिनेत्राय व्याधाय वसुरेतसे ।
अचिन्त्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्वदेवस्तुताय च ।।५॥
वृषध्वजाय मुण्डाय जिटने ब्रह्मचारिणे ।
तप्यमानाय सिलले ब्रह्मण्यायाजिताय च ।।६॥
विश्वात्मने विश्वसृजे विश्वमावृत्य तिष्ठते ।
नमो नमस्ते सेव्याय भूतानां प्रभवे सदा ॥७॥
ब्रह्मवक्त्राय सर्वाय शंकराय शिवाय च ।
नमोऽस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नम: ॥८॥
नमो विश्वस्य पतये महतां पतये नम: ।
नम: सहस्रिशरसे सहस्रभुजमृत्यवे ।
सहस्रनेत्रपादाय नमोऽसंख्येयकर्मणे॥९॥
नमो हिरण्यवर्णाय हिरण्यकवचाय च ।
भक्तानुकिम्पने नित्यं सिध्यतां नो वर: प्रभो ।।१०॥
एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेव: सहार्जुन: ।
प्रसादयामास भवं तदा ह्यस्त्रोपलब्धये ॥११॥
शास्त्रों और पुराणों में भगवान शिव के अनेक नाम है। जिसमें से 108 नामों का विशेष महत्व है। यहां अर्थ सहित नामों को प्रस्तुत किया जा रहा है।
1- शिव – कल्याण स्वरूप
2- महेश्वर – माया के अधीश्वर
3- शम्भू – आनंद स्वरूप वाले
4- पिनाकी – पिनाक धनुष धारण करने वाले
5- शशिशेखर – सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
6- वामदेव – अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
7- विरूपाक्ष – विचित्र आंख वाले( शिव के तीन नेत्र हैं)
8- कपर्दी – जटाजूट धारण करने वाले
9- नीललोहित – नीले और लाल रंग वाले
10- शंकर – सबका कल्याण करने वाले
11- शूलपाणी – हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
12- खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले
13- विष्णुवल्लभ – भगवान विष्णु के अति प्रिय
14- शिपिविष्ट – सितुहा में प्रवेश करने वाले
15- अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति
16- श्रीकण्ठ – सुंदर कण्ठ वाले
17- भक्तवत्सल – भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
18- भव – संसार के रूप में प्रकट होने वाले
19- शर्व – कष्टों को नष्ट करने वाले
20- त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी
21- शितिकण्ठ – सफेद कण्ठ वाले
22- शिवाप्रिय – पार्वती के प्रिय
23- उग्र – अत्यंत उग्र रूप वाले
24- कपाली – कपाल धारण करने वाले
25- कामारी – कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले
26- सुरसूदन – अंधक दैत्य को मारने वाले
27- गंगाधर – गंगा जी को धारण करने वाले
28- ललाटाक्ष – ललाट में आंख वाले
29- महाकाल – कालों के भी काल
30- कृपानिधि – करूणा की खान
31- भीम – भयंकर रूप वाले
32- परशुहस्त – हाथ में फरसा धारण करने वाले
33- मृगपाणी – हाथ में हिरण धारण करने वाले
34- जटाधर – जटा रखने वाले
35- कैलाशवासी – कैलाश के निवासी
36- कवची – कवच धारण करने वाले
37- कठोर – अत्यंत मजबूत देह वाले
38- त्रिपुरांतक – त्रिपुरासुर को मारने वाले
39- वृषांक – बैल के चिह्न वाली ध्वजा वाले
40- वृषभारूढ़ – बैल की सवारी वाले
41- भस्मोद्धूलितविग्रह – सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
42- सामप्रिय – सामगान से प्रेम करने वाले
43- स्वरमयी – सातों स्वरों में निवास करने वाले
44- त्रयीमूर्ति – वेदरूपी विग्रह करने वाले
45- अनीश्वर – जो स्वयं ही सबके स्वामी है
46- सर्वज्ञ – सब कुछ जानने वाले
47- परमात्मा – सब आत्माओं में सर्वोच्च
48- सोमसूर्याग्निलोचन – चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले
49- हवि – आहूति रूपी द्रव्य वाले
50- यज्ञमय – यज्ञस्वरूप वाले
51- सोम – उमा के सहित रूप वाले
52- पंचवक्त्र – पांच मुख वाले
53- सदाशिव – नित्य कल्याण रूप वाल
54- विश्वेश्वर- सारे विश्व के ईश्वर
55- वीरभद्र – वीर होते हुए भी शांत स्वरूप वाले
56- गणनाथ – गणों के स्वामी
57- प्रजापति – प्रजाओं का पालन करने वाले
58- हिरण्यरेता – स्वर्ण तेज वाले
59- दुर्धुर्ष – किसी से नहीं दबने वाले
60- गिरीश – पर्वतों के स्वामी
61- गिरिश्वर – कैलाश पर्वत पर सोने वाले
62- अनघ – पापरहित
63- भुजंगभूषण – सांपों के आभूषण वाले
64- भर्ग – पापों को भूंज देने वाले
65- गिरिधन्वा – मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
66- गिरिप्रिय – पर्वत प्रेमी
67- कृत्तिवासा – गजचर्म पहनने वाले
68- पुराराति – पुरों का नाश करने वाले
69- भगवान् – सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न
70- प्रमथाधिप – प्रमथगणों के अधिपति
71- मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले
72- सूक्ष्मतनु – सूक्ष्म शरीर वाले
73- जगद्व्यापी- जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले
74- जगद्गुरू – जगत् के गुरू
75- व्योमकेश – आकाश रूपी बाल वाले
76- महासेनजनक – कार्तिकेय के पिता
77- चारुविक्रम – सुन्दर पराक्रम वाले
78- रूद्र – भयानक
79- भूतपति – भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
80- स्थाणु – स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
81- अहिर्बुध्न्य – कुण्डलिनी को धारण करने वाले
82- दिगम्बर – नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
83- अष्टमूर्ति – आठ रूप वाले
84- अनेकात्मा – अनेक रूप धारण करने वाले
85- सात्त्विक- सत्व गुण वाले
86- शुद्धविग्रह – शुद्धमूर्ति वाले
87- शाश्वत – नित्य रहने वाले
88- खण्डपरशु – टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
89- अज – जन्म रहित
90- पाशविमोचन – बंधन से छुड़ाने वाले
91- मृड – सुखस्वरूप वाले
92- पशुपति – पशुओं के स्वामी
93- देव – स्वयं प्रकाश रूप
94- महादेव – देवों के भी देव
95- अव्यय – खर्च होने पर भी न घटने वाले
96- हरि – विष्णुस्वरूप
97- पूषदन्तभित् – पूषा के दांत उखाड़ने वाले
98- अव्यग्र – कभी भी व्यथित न होने वाले
99- दक्षाध्वरहर – दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले
100- हर – पापों व तापों को हरने वाले
101- भगनेत्रभिद् – भग देवता की आंख फोड़ने वाले
102- अव्यक्त – इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
103- सहस्राक्ष – हजार आंखों वाले
104- सहस्रपाद – हजार पैरों वाले
105- अपवर्गप्रद – कैवल्य मोक्ष देने वाले
106- अनंत – देशकालवस्तु रूपी परिछेद से रहित
107- तारक – सबको तारने वाले
108- परमेश्वर – परम ईश्वर
आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित शिवस्तवन अति दिव्य ओर शिवजी का पूर्ण आराध है । इस स्तवन के नित्य पाठ करने से जीव मुक्तिपद को प्राप्त करता है ।
वेदसार शिवस्तव:॥
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥१॥
भावार्थ— जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पापका ध्वंस करने वाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हुॅं ||1||
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥
भावार्थ— चन्द्र,सूर्य और अग्नि— तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदु:खदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूॅं ||2||
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥३॥
भावार्थ— जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारक आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर में भस्म लगाये हुए हैं और श्री पार्वतीजी जिनकी अद्र्धागिंनी हैं, अन पंचमुख महादेवजी को मैं भजता हुॅं ||3||
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥४॥
भावार्थ— हे पार्वतीवल्लभ महादेव ! हे चन्द्रशेखर ! हे महेश्वर ! हे त्रिशूलिन ! हे जटाजूटधरिन्! हे विश्वरूप ! एकमात्र आप ही जगत् में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो ! प्रसन्न् होइये, प्रसन्न् होइये ||4||
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥५॥
भावार्थ— जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत् के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्राणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूॅ ||5||
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ॥६॥
भावार्थ— जो ज पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश है; न तन्द्रा हैं, निन्द्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूॅं ||6||
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥७॥
भावार्थ— जो अजन्मा हैं नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रय से विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूप को मैं प्रणाम करता हूॅं ||7||
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥८॥
भावार्थ— हे विश्वमूर्ते ! हे विभो ! आपको नमस्कार है। नमस्कार है हे चिदानन्दमूर्ते ! आपको नमस्कार हैं नमस्कार है। हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। वेदवेद्य भगवन् ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है ||8||
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ॥९॥
भावार्थ— हे प्रभो ! हे त्रिशूलपाणे ! हे विभो ! हे विश्वनाथ ! हे महादेव ! हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे त्रिनेत्र ! हे पार्वतीप्राणवल्लभ ! हे शान्त ! हे कामारे ! हे त्रपुरारे ! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, माननीय है और न गणनीय है ||9||
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्
काशीपते करुणया जगदेतदेक-
स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ॥१०॥
भावार्थ— हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे करूणामय ! हे त्रिशूलिन् ! हे गौरीपते ! हे पशुपते ! हे पशुबन्धमोचन ! हे काशीश्वर ! एक तुम्हीं करूणावश इस जगत् की उत्पति, पालत और संहार करते हो; प्रभो ! तुम ही इसके एक मात्र स्वामी हो ||10||
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन् ॥११॥
भावार्थ— हे देव ! हे शंकर ! हे कन्दर्पदलन ! हे शिव ! हे विश्वनाथ ! हे इश्वर ! हे हर ! हे हर ! हे चराचरजगद्रूप प्रभो ! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत् तुम्हीं से उत्पन्न होता है, तुम्हीं में स्थित रहता है और तुम्हीं में लय हो जाता है ||11||
आप सभी धर्म प्रेमीजनों पर शिवजी की सदैव कृपा रहै यही प्रार्थना सह अस्तु … श्री मात्रेय नमः
Related posts
Subscribe for newsletter
* You will receive the latest news and updates on your favorite celebrities!
सरकारी नौकरी का ग्रहों से संबंध तथा पाने का उपाय
सरकारी नौकरी पाने की कोशिश हर कोई करता है, हलांकि सरकारी नौकरी किसी किसी के नसीब में होती है। अगर…
जानिए कैसे ग्रह आपकी समस्याओं से जुड़े हैं
जीवन में छोटी-मोटी परेशानियां हों तो यह सामान्य बात है, लेकिन लगातार परेशानियां बनी रहें या छोटी-छोटी समस्याएं भी बड़ा…
Vish yog का जीवन पर प्रभावVish yog का जीवन पर प्रभाव
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में Vish yog और दोष व्यक्ति के जीवन पर सीधा प्रभाव डालते हैं, यदि किसी…
सातवें घर में बृहस्पति और मंगल प्रभाव
वैदिक ज्योतिष के अनुसार सातवें घर से पति-पत्नी, सेक्स, पार्टनरशिप, लीगल कॉन्ट्रैक्ट आदि का विचार कर सकते हैं इस भाव…
Kumbh Mela 2025 Prayagraj Date and Place: स्नान तिथि और पंजीकरण की जानकारी
भारत में कुंभ मेला धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक है। यह मेला हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा पर्व है।…
16 Somvar vrat : कथा, नियम और फायदे | शिव जी की कृपा पाने का सरल उपाय
हिंदू धर्म में सोमवार व्रत (16 Somvar vrat) का विशेष महत्व है। इसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के…
Kartik purnima date कब है? जानें पूजन का शुभ समयऔर विधि
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik purnima 2024) Kartik purnima, हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है। इसे विशेष रूप से…
chhath puja date 2024: , शुभ मुहूर्त, व्रत नियम, पूजा विधिऔर कथा
chhath puja, जिसे ‘सूर्य षष्ठी व्रत’ भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह मुख्य…