Kundali का पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि, स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा मित्र राशि में हो कर यदि जन्म कुंडली के लग्न भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव या नवम भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रहों से युक्त ना हो तो Kundali में सन्तान योग मिलता है।
जन्म Kundali में बृहस्पति उत्तम स्थिति में हो और कुंडली का पंचमेश भी मजबूत अवस्था में हो
तथा ये दोनों एक दूसरे को देखते हों या एक दूसरे से अच्छे संबंध बनाएं तो संतान सुख की प्राप्ति होती है।
यदि कुंडली के पंचम भाव में शुभ ग्रह विराजमान हो अथवा पंचम भाव का स्वामी वर्गोत्तम हो
या पंचम भाव में ही विराजमान हो अथवा पूर्ण दृष्टि से पंचम भाव को देखता हो तो संतान सुख मिलता है।
स्वराशि के बृहस्पति अथवा शुभ अंशों के बृहस्पति नवम भाव में बैठकर पंचम भाव को दृष्टि देते हो
और पंचम भाव का स्वामी अच्छी अवस्था में हो तो संतान सुख की प्राप्ति की संभावना अधिक होती है।
यदि कुंडली का लग्न और पंचम भाव गुरु और शुक्र के वर्गों में स्थित हो और शुक्र और चंद्रमा से युक्त हो तो अच्छी संतान का सुख मिलता है।
कुंडली में पंचम भाव पीड़ित अवस्था में हो अथवा श्रापित दोष से युक्त हो या फिर पितृदोष से युक्त हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है।
यदि पंचम भाव में सूर्य देव वृषभ राशि, सिंह राशि, कन्या राशि और वृश्चिक राशि में स्थित हों
तथा कुंडली के अष्टम भाव में शनि देव विराजमान हों तो संतान सुख में विलंब हो सकता है।
Kundali में सन्तान सुख के विशेष योग
पंचम भाव पर मंगल की दृष्टि हो तो संतान सुख में विलंब और कष्ट हो सकता है।
कुंडली में ऐसे योग होने पर देर से मिल पाता है संतान सुख
सप्तम भाव में लग्न भाव का स्वामी युति करें तो संतान सुख की प्राप्ति होती है।
सूर्य गुरु और मंगल को शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए
जब व्यक्ति की कुंडली में संतान योग कारक पुरुष होता है, तो पुत्र तथा कारक गृह स्त्री हो तो पुत्री प्राप्ति के योग बनते हैं
पंचम भाव में पुरुष राशि तथा पुरुष संज्ञक ग्रहों की स्थिति पुत्र प्राप्ति की ओर संकेत करती है
एकादश भाव में बुध, शुक्र अथवा बली चंद्रमा शुभ स्थिति में हो तो उत्तम संतान सुख होता है।
कुंडली के पंचम भाव में केतु विराजमान हो तो भी संतान सुख मिल सकता है।
नवम भाव में बृहस्पति अथवा शुक्र ग्रह पंचमेश विराजमान हों तो Kundali में सन्तान सुख के विशेष योग मिलती है।
उपरोक्त ग्रहों की स्थिति के अतिरिक्त कुंडली में अच्छा शुक्र गर्भधारण में मदद करता है
तो वहीं शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा का धर्म देव गुरु बृहस्पति निभाते हैं
और इसलिए देव गुरु बृहस्पति का लग्न अथवा भाग्य स्थान में बैठना अत्यंत शुभ परिणाम प्रदान करता है।
बृहस्पति के अतिरिक्त यदि शुक्र ग्रह भी पंचम भाव में विराजमान हो या पंचम भाव से संबंध बना रहे हों तो
उनकी दशा भी संतान प्राप्ति में उत्तम परिणाम प्रदान करती है।
यदि जातक की कुंडली में पंचम भाव पर मंगल अथवा राहु की दृष्टि पड़ रही हो
तो यह दृष्टि संतान को हानि पहुंचाने वाली मानी जाती है
और उन ग्रहों की दशा आने पर संतान को समस्या होने की संभावना बन जाती है