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chhath puja date 2024: , शुभ मुहूर्त, व्रत नियम, पूजा विधिऔर कथा
chhath puja date 2024: , शुभ मुहूर्त, व्रत नियम, पूजा विधिऔर कथा
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chhath puja date 2024: , शुभ मुहूर्त, व्रत नियम, पूजा विधिऔर कथा 

chhath puja, जिसे ‘सूर्य षष्ठी व्रत’ भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य भगवान और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है। छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है जिसमें श्रद्धालु कठिन व्रत रखते हैं और सूर्य देवता से अपनी सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

छठ पूजा 2024 की तिथि (chhath puja 2024 date and time )

छठ पूजा 2024 में 7 नवंबर से शुरू होकर 10 नवंबर तक मनाई जाएगी।

नहाय-खाय (Nahay Khay Date 2024) 7 नवंबर 2024 (गुरुवार)

खरना: (kharna 2024 date) 8 नवंबर 2024 (शुक्रवार)

संध्या अर्घ्य (Sandhya Arghya Date) 9 नवंबर 2024 (शनिवार)

प्रातःकालीन अर्घ्य: 10 नवंबर 2024 (रविवार)

छठ पूजा 2024 शुभ मुहूर्त (chhath puja 2024 subh muhurat)

संध्या अर्घ्य (सूर्यास्त का समय): 9 नवंबर 2024 को लगभग शाम 5:25 बजे

प्रातः अर्घ्य (सूर्योदय का समय): 10 नवंबर 2024 को सुबह 6:32 बजे

इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 39 मिनट पर और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 41 मिनट पर होगा

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छठ पूजा 2024 व्रत नियम (Chhath Puja Vrat Niyam)

शुद्धता:

छठ व्रत में पवित्रता और शुद्धता का अत्यधिक महत्व होता है। व्रत रखने वाले को पूरे चार दिन बिना प्याज, लहसुन और मांसाहार से दूर रहना होता है।

खरना:

दूसरे दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखकर शाम को प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे ‘खरना’ कहा जाता है। इस प्रसाद में गुड़ से बनी खीर, रोटी, और केला मुख्य होते हैं।

जलाहार:

संध्या अर्घ्य और प्रातःकालीन अर्घ्य के बीच व्रती निर्जल रहते हैं। यह सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।

सूर्य को अर्घ्य देना: व्रती सूर्य देव को नदी, तालाब या किसी जलाशय के किनारे अर्घ्य देते हैं। संध्या और प्रातः दोनों समय अर्घ्य देने का विशेष महत्व है।

छठ पूजा विधि (Chhath Puja vidhi)

पहला दिन (नहाय-खाय):

 छठ पूजा का प्रारंभ ‘नहाय-खाय’ से होता है। इस दिन व्रती गंगा स्नान कर पवित्रता से घर आकर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं।

दूसरा दिन (खरना):

 व्रती पूरे दिन उपवास रखकर शाम को खरना का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद का उपवास अत्यंत कठिन होता है, क्योंकि इसमें जल भी नहीं पिया जाता है।

तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य):

तीसरे दिन व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस अर्घ्य को देने के लिए नदी या तालाब किनारे जाकर सूर्य को दूध, जल, और गुड़ से अर्घ्य दिया जाता है।

चौथा दिन (प्रातः अर्घ्य):

चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद व्रत खोलते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं।

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छठ पूजा की कथा (chhath puja story)

chhath puja की कई धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब पांडवों ने अपना सारा राज्य जुए में हार दिया था, तब द्रौपदी ने इस व्रत को किया और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। दूसरी कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद को पुत्र नहीं था। महर्षि कश्यप ने उन्हें यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसी कारण छठी मैया की पूजा संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए की जाती है।

छठ पूजा मंत्र (Chhath Puja Mantra)

chhath puja में सूर्य देव को अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:

  • ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नमः
  • ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा
  • ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ

इसके अलावा, व्रती छठी मैया का भी स्मरण करते हैं और उनसे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

छठ पूजा का महत्व (chhath Puja importance)

chhath puja का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता को धन्यवाद देना और उनसे आरोग्य और सुख-समृद्धि की कामना करना है। सूर्य को उर्जा का स्रोत माना जाता है, और उनका पूजन जीवन की हर समस्या का समाधान कर सकता है। इस पूजा में शुद्धता, सरलता और संयम का अत्यधिक महत्व होता है।

छठ पूजा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

यह त्योहार मानव और प्रकृति के बीच के गहरे संबंधों को उजागर करता है।

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Disclamer : यह लेख छठ पूजा से संबंधित सामान्य जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई तिथियां, समय, व्रत नियम, पूजा विधि, और कथा आदि जानकारी विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित हैं। तिथियों और शुभ मुहूर्तों की सटीकता के लिए स्थानीय पंचांग या विश्वसनीय ज्योतिषियों से परामर्श करना उचित होगा। छठ पूजा से जुड़ी कोई भी धार्मिक क्रियाएं या विधियां व्यक्तिगत आस्था और परंपराओं पर निर्भर करती हैं, इसलिए पाठक स्वयं निर्णय लें और उचित मार्गदर्शन प्राप्त करें।

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