Ahoi Ashtami Vrat हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को विशेष रूप से संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और सुखी जीवन के लिए किया जाता है। हालांकि यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है, लेकिन अब यह देश के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय हो रहा है। इसके अलावा, जो माताएं संतान प्राप्ति की कामना करती हैं, वे भी इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करती हैं।तो आइए जानते हैं Ahoi Ashtami Vrat Date, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, और इसके पीछे छुपे आध्यात्मिक महत्व
अहोई अष्टमी व्रत तिथि (Ahoi Ashtami Vrat Date)
इस वर्ष, अहोई अष्टमी व्रत 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन का इंतजार सभी माताएं बेसब्री से करती हैं,
क्योंकि इस व्रत के माध्यम से वे अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुखद जीवन की कामना करती हैं।
व्रत का आरंभ सूर्योदय के साथ होता है और यह व्रत रात में तारों के दर्शन के बाद संपन्न होता है।
इसलिए, इस दिन माताएं पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं और तारों की पूजा के बाद ही व्रत खोलती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि (Ahoi Ashtami Vrat Date Pujan Vidhi)
अब व्रत की तिथि के बारे में जान चुके हैं, तो आइए इसकी पूजा विधि पर नजर डालते हैं।
सबसे पहले, अहोई अष्टमी के दिन घर की सफाई करें और पूजा स्थान को स्वच्छ बनाएं।
तत्पश्चात, पूजा के लिए अहोई माता की तस्वीर (ahoi mata ki tasveer) और अहोई अष्टमी की माला (Ahoi ashtami vrat ki mala) की आवश्यकता होती है।
साथ ही, रंगोली बनाकर उस पर अहोई माता की तस्वीर स्थापित करें।
इसके बाद, अहोई माता के चित्र के सामने दीपक जलाएं।
पूजा के लिए लाल वस्त्र पहनकर अहोई माता की विधिवत पूजा करें।
पूजा में चावल, रोली, फूल, फल, सिंघाड़ा और मिठाई का भोग लगाएं।
विशेष रूप से, सवा मन की माला (जिसे अहोई अष्टमी की माला कहा जाता है) का उपयोग पूजा के दौरान किया जाता है।
माला को अहोई माता की तस्वीर के ऊपर लटकाया जाता है, जो इस व्रत की प्रमुख परंपराओं में से एक है।
तत्पश्चात, अहोई माता की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद, तारों के दर्शन के समय एक दीपक लेकर अहोई माता की आरती करें।
आरती के बाद, बच्चों के माथे पर टीका लगाकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना करें।
इसके बाद, तारों को जल अर्पित करके व्रत को खोलें। इससे व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami Vrat Date and Shubh Muhurat)
हर व्रत और पूजा में शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। इसी प्रकार, अहोई अष्टमी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना अत्यधिक आवश्यक होता है।
इस वर्ष, पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 42 मिनट बजे से 6 बजकर 59 मिनट बजे तक रहेगा।
इस अवधि के दौरान, पूजा करना अत्यधिक फलदायी माना जाता है। इसलिए, माताओं को चाहिए
कि वे इस समय का ध्यान रखते हुए पूजा करें। इससे पूजा का प्रभाव और भी अधिक बढ़ जाता है, और अहोई माता का आशीर्वाद सहज रूप से प्राप्त होता है।
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व (Importance of Ahoi Ashtami Vrat)
अब, जब हम पूजा की विधि और तिथि के बारे में समझ चुके हैं, तो आइए जानते हैं इस व्रत के महत्व के बारे में।
अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि, और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है।
वास्तव में, यह व्रत माताओं के लिए करवा चौथ की तरह ही महत्वपूर्ण होता है।
जहां करवा चौथ में पति की लंबी आयु की कामना की जाती है,
वहीं अहोई अष्टमी में संतान के कल्याण की कामना की जाती है।
इसका व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन पहले आता है।
इस दिन अहोई माता की पूजा कर उनसे अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य और स्वस्थ जीवन की प्रार्थना करती हैं।
पूजा के बाद, तारा दर्शन के माध्यम से व्रत खोला जाता है, जिससे इस व्रत की पवित्रता और भी बढ़ जाती है।
इसके अलावा, मान्यता है कि जो माताएं पूरी श्रद्धा और भक्ति से अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं,
उनकी संतान पर किसी भी प्रकार की आपदा नहीं आती।
अहोई माता की कथा (Ahoi Mata Ki Katha)
कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक महिला ने अपने पुत्र के लिए इस व्रत का पालन किया था।
एक बार, वह जंगल में लकड़ी काटने गई थी, तभी गलती से उसका कुल्हाड़ी एक साही के बच्चे पर गिर गया,
जिससे उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद, महिला ने संतान की सलामती के लिए अहोई माता की पूजा की और पश्चाताप किया।
अहोई माता ने उसकी श्रद्धा को देखकर उसे क्षमा कर दिया और उसकी संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया।
तब से, अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत के लाभ (Benefits of Ahoi Ashtami Vrat)
व्रत करने से कई आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं।
यह व्रत न केवल संतान की रक्षा के लिए बल्कि माता के मनोबल को भी बढ़ाता है।
उपवास के माध्यम से आत्मसंयम की भावना का विकास होता है,
और माता की अपने बच्चों के प्रति ममता और स्नेह और भी गहरा हो जाता है। इसके अतिरिक्त,
इस व्रत के कारण परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और घर में नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।
अहोई अष्टमी की तैयारियां (Preparations for Ahoi Ashtami vrat)
व्रत के लिए तैयारी करना भी एक महत्वपूर्ण चरण है। सबसे पहले, पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
जैसे रोली, चावल, फूल, माला, मिठाई, और अहोई तस्वीर (ahoi mata ki tasveer) को पहले से तैयार कर लें।
पूजा के दिन, सुबह से ही घर के सभी सदस्य मिलकर घर की साफ-सफाई करें।
इसके साथ ही, पूजा के लिए स्थान को सुंदर रूप से सजाएं और वहाँ रंगोली बनाएं।
पूजा के लिए एक चौकी पर अहोई माता की तस्वीर स्थापित करें और पूजा के सभी सामानों को वहां रखें।
निष्कर्ष (Conclusion)
अहोई अष्टमी व्रत न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह माताओं की अपने बच्चों के प्रति असीमित प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। यह व्रत संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन की कामना के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
अगर माताएं इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करती हैं,
तो अहोई माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है और बच्चों की जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
इसलिए, सभी माताओं को इस पावन व्रत को मनाने का संकल्प लेना चाहिए
और अपने बच्चों की भलाई के लिए इस विशेष दिन का लाभ उठाना चाहिए।
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