आइए सबसे पहले जानते हैं कि संतान बाधा के कारक क्या हैं?
जन्मकुंडली में पांचवां भाव संतान का भाव होता है. यदि पांचवें भाव में शुभ ग्रह स्थिति हों अथवा शुभ्र ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक स्वस्थ और बुद्धिमान संतान से युक्त होता है.किंतु यदि पंचम भाव अगर पीड़ित हो तो दंपत्ती को संतान प्राप्ति में बहुत सी बाधाएं आती हैं. कई बार तो दंपत्ती संतानहीन रह जाते हैं. शास्त्रों में संतान की कामना पूरा करने के कुछ कारगर और सरल उपाय बताए गए हैं जिनसे संतान प्राप्ति में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और दंपत्ती को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है.
आज मैं इसके दो सरल उपायों पर चर्चा करूंगा. विवाह बाधा और संतान बाधा दो ऐसे प्रश्न हैं जो कई कारकों से प्रभावित होते हैं. आज प्रश्न भी सबसे ज्यादा इसी से जुड़े होते हैं.
एक उपाय ही सबके लिए फलदायी हो ही जाए यह आवश्यक नहीं फिर भी आज मैं उस उपाय की चर्चा करूंगा जो व्यापक है. सबसे पहले संक्षेप में यह समझने का प्रयास करते हैं कि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार संतान की बाधा का कारण क्या है. यदि पति-पत्नी दोनों या किसी एक की भी कुंडली का पंचम भाव यदि पापग्रह से पीड़ित हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है. पंचम भाव लग्न से या चंद्रमा से पीड़ित हो अथवा पंचम भाव से पंचम भाव और बृहस्पति की स्थिति अच्छी न हो तो भी संतान प्राप्ति में बाधा आती है.
संतान बाधा दूर करने के उपाय .. पंचम भाव को जो ग्रह पीड़ित कर रहे हों सबसे पहले उनकी शांति करानी चाहिए. उन ग्रहों की शांति किसी अच्छे ज्योतिषी के परामर्श पर वैदिक मंत्र, बीज मंत्र और तंत्र-मंत्र से करा लेनी चाहिए. यदि बृहस्पति के दोष के कारण बाधा आ रही है तो उसके लिए बृहस्पति को प्रसन्न करने के उपाय स्वयं भी करने चाहिए. इसके लिए केले में जल देना, गुरूवार को व्रत रखना, पीला वस्त्र धारण करना और बृहस्पति के बीज मंत्र की साधना स्वयं पति-पत्नी को करना चाहिए.
– इन उपायों के साथ-साथ एक और कारगर उपाय बताया गया है संतान प्राप्ति का- संतान गोपाल मन्त्र का जप– छोटा सा संतान गोपाल मंत्र बहुत प्रभावशाली कहा गया है. – इस मंत्र का सवा लाख जप या यथासंभव जप करके इसे सिद्ध करने का प्रयास करना चाहिए. यदि स्वयं संभव न हो तो किसी वैदिक ब्राह्मण से कराना चाहिए .– स्वस्थ्य, सुंदर संतान प्राप्ति के लिए यह मंत्र पति-पत्नी दोनों के द्वारा किया जाए तो परिणाम सुंदर होता है.
संतान गोपाल मंत्र …
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुतं गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
संतान गोपाल मंत्र के जप की विधि : – पति-पत्नी दोनों सुबह स्नानकर पूरी पवित्रता के साथ उपरोक्त मंत्र के एक निश्चित अवधि में जप का संकल्प लें – जप के लिए तुलसी की माला का प्रयोग करें. – पूजाघर में या मंदिर देवालय में भगवान श्रीकृष्ण की बालस्वरूप मूर्ति या चित्र की चन्दन, अक्षत, फूल, तुलसी दल और माखन का भोग लगाकर घी के दीपक जलाएं एवं कर्पूर से आरती करें. – भगवान की पूजा के बाद या आरती के पहले उपरोक्त संतान गोपाल मंत्र का जप करें. मंत्रजप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें – यह मंत्र जप पति-पत्नी साथ में या अकेले भी कर सकते हैं. – संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ भी कराए जाते हैं. पुत्रेष्टि यज्ञ एवं संतान गोपाल यंत्र के द्वारा अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है.
संतान गोपाल यंत्र का उपयोग .. संतान गोपाल यंत्र की गुरुपुष्य नक्षत्र में पूजन एवं प्रतिष्ठा करें. – उसके पश्चात् संतान गोपाल स्त्रोत्र का पाठ करने से शीघ्र ही गृह में कुलीन एवं अच्छे गुणों से युक्त संतान की उत्पत्ति होती है तथा माता पिता की सेवा में ऐसी संतानें हमेशा तत्पर रहती हैं. – संतान गोपाल यंत्र को गोशाला में प्रतिष्ठित करके गोपालकृष्ण का मंत्र का जप श्रद्धापूर्वक करने से वध्या को भी शीघ्र ही पुत्ररत्न उत्पन्न होता है तथा सभी गुणों से सम्पन्न होता है.
गर्भाधान में रखें ध्यानः काम की बातें :मनुष्य धन-सम्पत्ति बढ़ाने में जितना ध्यान देता है उतना संतान पैदा करने में नहींदेता यदि शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में गर्भाधान कर संतानप्राप्ति की जाय तो संतान परिवार का यश बढ़ाने वाली होती है. संतान प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम पति-पत्नी का तन-मन स्वस्थ होना चाहिए. वर्षमें केवल एक ही बार संतानोत्पत्ति हेतु समागम करना हितकारी है. गर्भाधान के लिए समय के विचार पर ध्यान देना बहुत आवश्यक होता है. इससे मनोनुकूल संतान प्राप्त होती है.
गर्भाधान के लिए समागम के श्रेष्ठ समय का विचार : -ॠतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13वीं रात्रि वर्जित है. -यदि पुत्र की इच्छा हो तो पत्नी को ॠतुकाल की 8, 10, 12, 14 व 16वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि के शुभ मुहूर्त में समागम करना चाहिए. -यदि पुत्री की इच्छा हो तो ॠतुकाल की 5, 7, 9 या15वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए. -कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र वशुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होती है. -रजोदर्शन दिन को हो तो वह प्रथम दिन गिनना चाहिए -सूर्यास्त के बाद हो तो सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय के तीन समान भाग कर प्रथम दो भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए. -रात्रि के तीसरे भाग में रजोदर्शन हुआ हो तोदूसरे दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए -हस्त, स्वाति, अश्विनी, मृगशीर्ष, अनुराधा, धनिष्ठा, ध्रुव संज्ञक (तीनों उत्तरा एवं रोहिणी) एवं ज्येष्ठा नक्षत्रों में शुभतिथियों एवं शुभवारों को ऋतुमति स्त्री को स्नान करना चाहिए. -मृगशीर्ष, रेवती, स्वाती, हस्त, अश्विनी एवं रोहिणी नक्षत्रों में स्नान करने से स्त्री अतिशीघ्र गर्भधारण करती है.डाण्त, नक्षत्र गडाण्त और लग्न गडाण्त का विचार अवश्य करना चाहिए
समागम के लिए निषिद्ध रात्रियां .. पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, ऊत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों की रात्रि, श्राद्ध के दिन गर्भाधान के लिए समागम नहीं करना चाहिए .– चतुर्मास, प्रदोषकाल, क्षयतिथि (दो तिथियों का समन्वय काल) एवं मासिक धर्म के चार दिन तक गर्भधारण की कामना से समागम नहीं चाहिए. – शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए – तिथिगंड मूल, भरणी, अश्विनी, रेवती, मघा नक्षत्रों में गर्भाधान यज्ञ यानी गर्मधारण के लिए समागम नहीं करना चाहिए. – नक्षत्रों की संधिकाल में भी समागम नहीं करना चाहिए .– माता पिता की मृत्यु तिथि, स्वयं की जन्म तिथि को भी संतान प्राप्ति की कामना से समागमनहीं करें. दिन में समागम करने से आयु व बल का बहुत ह्रास होता है.
संतान प्राप्ति हेतु समागम के लिए शैय्या पर जाने का विधान :गर्भाधान को शास्त्रों में संतान प्राप्ति यज्ञ कहा गया है इसलिए संतान प्राप्ति की कामना के साथ किए समागम में विलास नहीं बल्किएक यज्ञ की भावना रखनी चाहिए. पति-पत्नी को समागम से पूर्व देवताओं एवं उत्तम आत्माओं की प्रार्थना के बाद उनका आह्वान करना चाहिए:हे ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहीं सूक्ष्म रूपधारी पवित्र आत्माओं! हम दोंनो पति-पत्नी आपकी प्रार्थना करते हैं कि हमारे घर में जन्म धारण कर कृतार्थ करें. हम दोनों अपने शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बनाएंगे. -इस प्रार्थना के बाद पहले पुरुष शय्या पर जाए. उसे दायां पैर पहले रखना चाहिए. स्त्री बायें पैर से पति के दाहिनी ओर शय्या पर चढ़े फिर शय्या पर यह मंत्र पढ़ना चाहिए :
अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठासि धाता त्वां दधातु विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेति ब्रह्मा बृहस्पति र्विष्णुः सोम सूर्यस्तथाऽश्विनौ भगोऽथ मित्रावरुणौ वीरं ददतु मे सुतम्
(हे गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें. तुम ब्रह्मतेज से युक्त होकर ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य, अश्विनीकुमार और मित्रावरुण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान करें.