नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं। भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं।।1
निकाम श्याम सुंदरं। भवाम्बुनाथ मंदरं। प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं।।2
प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं। निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं।।3
दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं। मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं।।4
मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं। विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहं।।5
नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं। भजे सशक्ति सानुजं। शची पतिं प्रियानुजं।।6
त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सरा। पतंति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले।।7
विविक्त वासिनः सदा। भजंति मुक्तये मुदा। निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांति ते गतिं स्वकं।।8
तमेकमभ्दुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं। जगद्गुरुं च शाश्वतं। तुरीयमेव केवलं।।9
भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां सुदुर्लभं। स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहं।।10
अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं। प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे।।11
पठंति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदं। व्रजंति नात्र संशयं। त्वदीय भक्ति संयुता।।12
कृतार्तदेववन्दनं दिनेशवंशनन्दनम्। सुशोभिभालचन्दनं नमामि राममीश्वरम्।।13।।
मुनीन्द्रयज्ञकारकं शिलाविपत्तिहारकम्। महाधनुर्विदारकं नमामि राममीश्वरम्।।14।।
स्वतातवाक्यकारिणं तपोवने विहारिणम्। करे सुचापधारिणं नमामि राममीश्वरम्।।15।।
कुरंगमुक्तसायकं जटायुमोक्षदायकम्। प्रविद्धकीशनायकं नमामि राममीश्वरम्।।16।।
प्लवंगसंगसम्मतिं निबद्धनिम्नगापतिम्। दशास्यवंशसड़्क्षतिं नमामि राममीश्वरम्।।17।।
विदीनदेवहर्षणं कपीप्सितार्थवर्षणम्। स्वबन्धुशोककर्षणं नमामि राममीश्वरम्।।18।।
गतारिराज्यरक्षणं प्रजाजनार्तिभक्षणम्। कृतास्तमोहलक्षणं नमामि राममीश्वरम्।।19।।
हृताखिलाचलाभरं स्वधामनीतनागरम्। जगत्तमोदिवाकरं नमामि राममीश्वरम्।।20।।
इदं समाहितात्मना नरो रघूत्तमाष्टकम्। पठन्निरन्तरं भयं भवोद्भवं न विन्दते।।21।।
इति श्रीपरमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं श्रीरामाष्टकं सम्पूर्णम्।