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शुक्रवार को इस स्तोत्र का पाठ करने से दूर होगी घर की दरिद्रता | कभी नहीं होगी पैसों की कमी | श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम्
श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम्
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शुक्रवार को इस स्तोत्र का पाठ करने से दूर होगी घर की दरिद्रता | कभी नहीं होगी पैसों की कमी | श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम् 

श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्रम्: ऐसे करें पाठ, दूर होगी दरिद्रता- कभी नहीं होगी पैसों की कमी धन की देवी श्री लक्ष्मी है, उनकी कृपा से पूरे संसार में धन-दौलत और ऐश्वर्य विद्यमान है। समस्त संसार को आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन की जरुरत होती है। धन की प्राप्ति लक्ष्मी की कृपा के बिना संभव नहीं है। इसलिए कहीं न कहीं यह जरूरी हो जाता है कि हम लक्ष्मी मां को हमेशा प्रसन्न रखें ताकि देवी की कृपा से सुख-समृद्धि बनी रहें। हम बता रहे है धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का एक अद्भुत स्तोत्र-

Laxmi Ji Ki Aarti: Om Jai Laxmi Mata, मां लक्ष्मीजी की आरती, Maha Lakshmi  Ji Ki Aarti | Maha Laxmi Maa Diwali Aarti Puja: लक्ष्मी माता की आरती, ओम जय  लक्ष्मी माता,

ध्यानम्

चक्रं विद्या वर घट गदा दर्पणम् पद्मयुग्मं दोर्भिर्बिभ्रत्सुरुचिरतनुं मेघविद्युन्निभाभम् ।

गाढोत्कण्ठं विवशमनिशं पुण्डरीकाक्षलक्ष्म्यो-रेकीभूतं वपुरवतु वः पीतकौशेयकान्तम् ॥ १॥

शंखचक्रगदापद्मकुंभाऽऽदर्शाब्जपुस्तकम्।

बिभ्रतं मेघचपलवर्णं लक्ष्मीहरिं भजे ॥२॥

विद्युत्प्रभाश्लिष्टघनोपमानौ शुद्धाशयेबिंबितसुप्रकाशौ।

चित्ते चिदाभौ कलयामि लक्ष्मी- नारायणौ सत्त्वगुणप्रधानौ ॥३॥

लोकोद्भवस्थेमलयेश्वराभ्यां शोकोरुदीनस्थितिनाशकाभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥४॥

सम्पत्सुखानन्दविधायकाभ्यां भक्तावनाऽनारतदीक्षिताभ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥५॥

दृष्ट्वोपकारे गुरुतां च पञ्च-विंशावतारान् सरसं दधत्भ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥६॥

क्षीरांबुराश्यादिविराट्भवाभ्यां नारं सदा पालयितुं पराभ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥७॥

दारिद्र्यदुःखस्थितिदारकाभ्यां दयैवदूरीकृतदुर्गतिभ्याम्

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥८॥

भक्तव्रजाघौघविदारकाभ्यां स्वीयाशयोद्धूतरजस्तमोभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥९॥

रक्तोत्पलाभ्राभवपुर्धराभ्यां पद्मारिशंखाब्जगदाधराभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥१०॥

अङ्घ्रिद्वयाभ्यर्चककल्पकाभ्यां मोक्षप्रदप्राक्तनदंपतीभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥११॥

इदं तु यः पठेत् स्तोत्रं लक्ष्मीनारयणाष्टकम्।

ऐहिकामुष्मिकसुखं भुक्त्वा स लभतेऽमृतम् ॥१२॥

।। इति श्रीकृष्णकृतं लक्ष्मीनारयण स्तोत्रं संपूर्णम् ।।

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