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माता-पिता की कुंडली से प्रकट होते हैं संतान के रहस्य

By pavan

February 01, 2021

पूर्व जन्म तथा वर्तमान जन्म में जातक द्वारा किए गए कर्मों के फल से जातक के भाग्य का निर्माण होता है परंतु जातक के भाग्य निर्माण में जातक के अलावा अन्य लोगों के कर्मों का भी योगदान रहता है। प्राय: लोग इस ओर ध्यान नहीं देते।

कहा जाता है कि ‘बाढ़हि पुत्र पिता के धर्मा।’ पूर्वजों के कर्म भी उनकी संतानों के भाग्य को प्रभावित करते हैं

दशरथ ने श्रवण कुमार को बाण मारा जिसके फलस्वरूप माता-पिता के शाप के कारण पुत्र वियोग से मृत्यु का कर्मफल भोगना पड़ा। किंतु इसका परिणाम तो उनके पुत्रों, पुत्रवधू समेत पूरे राजपरिवार यहां तक कि अयोध्या की प्रजा को भी भोगना पड़ा। कहा जाता है कि ‘संगति गुण अनेक फल।’ घुन गेहूं की संगति करता है। गेहूं की नियति चक्की में पिसना है। गेहूं से संगति करने के कारण ही घुन को भी चक्की में पिसना पड़ता है।

देखा जाता है कि किसी जातक के पीड़ित होने पर उसके संबंधी तथा मित्र भी पीड़ित होते हैं। इस दृष्टि से सज्जनों का संग साथ शुभ फल और अपराधियों दुष्टों का संगसाथ अशुभ फल की पूर्व सूचना है। किसी भी अपराधी से संपर्क उसका आतिथ्य या उपहार स्वीकार करना भयंकर दुर्भाग्य विपत्ति को आमंत्रण देना है। अत: यश-अपयश, उचित-अनुचित का हर समय विचार करके ही कोई काम करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं से सुखद-दुखद स्थितियां बनती हैं। माता-पिता की कुंडली से उनकी संतानों पुत्र-पुत्री के भाग्य के रहस्य प्रकट होते हैं। अत: कुंडली देखते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।