Religious

भैरवी साधना और सिद्धि

By pavan

April 04, 2021

ब्रह्मांड की अगोचर शक्तिओ को जानना ओर उन प्रचंड शक्तिओ द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति करना इस उद्देश्य के साथ तपस्वी ऋषिमुनियों द्वारा स्वानुभव से अनेके मार्ग प्रदर्शित किए गए । अलग अलग ऋषि परंपराओं को उनकी क्रियाओं मुजब वैदिक , तांत्रिक , यांत्रिक , अघोर , नवधा भक्ति , अग्निहोत्र , साम गान , योगिक , कर्मयोग ओर सेवाधर्म जैसे अनेक नामो से जाना गया है । तंत्र मार्ग अतिशीघ्र प्रचंड शक्ति साध्य मार्ग है । अति सूक्ष्म पर सम्पूर्ण सत्य विज्ञान है । प्रकृति की शक्तिओ ओर तत्व शक्तिओ को साध्य कर ब्रह्मांड की दिव्य शक्तिओ से जूड़ कर ब्रह्म प्राप्ति का मार्ग है । समय के साथ कही उपासको के स्वानुभव से सरल क्रियाएं भी दी गई तो कभी बिनानुभवि स्वार्थी गुरुओं द्वारा खुदके लाभ केलिए मनचाहा परिवर्तन हुवा जो मूल रास्ते से भटक गए और कही कही वो गलत परम्पराए भी चली है । इसलिए तंत्र धर्म बदनाम होता रहा है ।

भैरवी उपासना का प्रयत्न साधक ओर साधिका दोनो को भैरव ओर भैरवी की प्रसन्नता केलिएे किये प्रयत्न बदल भी लाभदायी ही होता है , चाहे फिर वो उपासना पूर्ण कर सिद्ध न हो । क्योंकि शक्ति की प्रसन्नता केलिए किय्या प्रयत्न भी श्रेष्ठ भक्ति है । भैरवी उपासना के विज्ञान को ओर उनके सूक्ष्म स्वरूप को समज सके तो वो अवश्य ही सफल होता है । योग्य गुरु का मार्गदर्शन ही पूर्ण सफलता की चावी है ।

तंत्र साधना , शक्ति साधना है | शक्ति प्राप्त करके उससे मोक्ष की अवधारणा तंत्र की मूल अवधारणा है | स्त्रियों को शक्ति का रूप माना जाता है ,कारण प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा जिसे शक्ति कहते हैं स्त्रियों में शीघ्रता से अवतरित होती है ,और तंत्र शक्ति को शीघ्र और अत्यधिक पाने का मार्ग है अतः तंत्र के क्षेत्र में प्रविष्ट होने के उपरांत साधक को किसी न किसी चरण में भैरवी का साहचर्य ग्रहण करना पड़ता ही है। तंत्र की एक निश्चित मर्यादा होती है। प्रत्येक साधक, चाहे वह युवा हो, अथवा वृद्ध, इसका उल्लंघन कर ही नहीं सकता, क्योंकि भैरवी ‘शक्ति’ का ही एक रूप होती है, तथा तंत्र की तो सम्पूर्ण भावभूमि ही, ‘शक्ति’ पर आधारित है।भैरवी ,स्त्री होती है और स्त्री शरीर रचना की दृष्टि से और मानसिक संरचना की दृष्टि से कोमल और भावुकता प्रधान होती है |यह उसका नैसर्गिक प्राकृतिक गुण है | उसमे ऋण ध्रुव अधिक शक्तिशाली होता है और शक्ति साधना प्रकृति के ऋण शक्ति की साधना ही है | इसलिए भैरवी में ऋण शक्ति का अवतरण अतिशीघ्र और सुगमता से होता है जबकि पुरुष अथवा भैरव में इसका वतरण और प्राप्ति कठिनता से होती है । इस कारण भैरव को भैरवी से शीघ्रता और सुगमता से शक्ति प्राप्त हो जाती है |

भैरवी साधना या भैरवी पूजा का रहस्य यही है, कि साधक को इस बात का साक्षात करना होता है, कि स्त्री केवल वासनापूर्ति का एक माध्यम ही नहीं, वरन शक्ति का उदगम भी होती है और यह क्रिया केवल सदगुरुदेव ही अपने निर्देशन में संपन्न करा सकते है, क्योंकि उन्हें ही अपने किसी शिष्य की भावनाओं व् संवेदनाओं का ज्ञान होता है। इसी कारणवश तंत्र के क्षेत्र में तो पग-पग पर गुरु साहचर्य की आवश्यकता पड़ती है, अन्य मार्गों की अपेक्षा कहीं अधिक। किन्तु यह भी सत्य है, कि समाज जब तक भैरवी साधना या श्यामा साधना जैसी उच्चतम साधनाओं की वास्तविकता नहीं समझेगा, तब तक वह तंत्र को भी नहीं समझ सकेगा, तथा, केवल कुछ धर्मग्रंथों पर प्रवचन सुनकर अपने आपको बहलाता ही रहेगा।प्रारम्भिक काल से ही शक्ति साधना तंत्र का अंग रहा है |इसके अपने सूत्र रहे हैं |

बाद में इसमें दो धाराएं चलने लगी वाम मार्गी और दक्षिण मार्गी |दक्षिण मार्गी साधना वैदिक मार्ग से प्रेरित रही और समाज का वह वर्ग इससे जुड़ा रहा जो सात्विक विचारधारा का था |दूसरा मार्ग वाम मार्ग शक्ति साधना को तामसिकता से करने की और बढ़ा और उसके एकाग्रता आदि बढाने के लिए शराब आदि का सेवन शुरू किया | इस प्रकार शक्ति उपासकों का जो दुसरा वाम मार्गी मत था, उसमें शराब को जगह दी गई। उसके बाद बलि प्रथा आई और माँस का सेवन होने लगा। इसी प्रकार इसके भी दो हिस्से हो गये, जो शराब और माँस का सेवन करते थे, उन्हे साधारण-तान्त्रिक कहा जाने लगा। लेकिन जिन्होनें माँस और मदिरा के साथ-साथ मीन(मछली), मुद्रा(विशेष क्रियाँऐं), मैथुन(स्त्री का संग) आदि पाँच मकारों का सेवन करने वालों को सिद्ध-तान्त्रिक कहाँ जाने लगा। आम व्यक्ति इन सिद्ध-तान्त्रिकों से डरने लगा। किन्तु आरम्भ में चाहें वह साधारण-तान्त्रिक हो या सिद्ध-तान्त्रिक, दोनों ही अपनी-अपनी साधनाओं के द्वारा उस ब्रह्म को पाने की कोशिश करते थे। जहाँ आरम्भ में पाँच मकारों के द्वार ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा बनाई जाती थी और उस ऊर्जा को कुन्डलिनी जागरण में प्रयोग किया जाता था। ताकि कुन्डलिनी जागरण करके सहस्त्र-दल का भेदन किया जा सके और दसवें द्वार को खोल कर सृष्टि के रहस्यों को समझा जा सके।

कोई माने या न माने लेकिन यदि काम-भाव का सही इस्तेमाल किया जा सके तो इससे ब्रह्म की प्राप्ति सम्भव है। इसी वक्त एक और मत सामने आया जिसमें की भैरवी-साधना या भैरवी-चक्र को प्राथमिकता दी गई। इस मत के साधक वैसे तो पाँचों मकारों को मानते थे, किन्तु उनका मुख्य ध्येय काम के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति था।इसमें कुंडलिनी जागरण हेतु काम भाव का सहारा लिया गया जिसकी तीब्रता से मूलाधार की शक्ति बढाकर उसे जागृत किये जाने का सूत्र अपनाया गया | यह सूत्र प्राकृतिक होने पर भी अति कठिन था ,और अधिकतर साधकों के भटकने ,नष्ट होने ,पथभ्रष्ट होने का खतरा था ,अतः इसे अति गोपनीय रखा गया और इस पर कोई भी प्रामाणिक और पूर्ण जानकारी देने वाले ग्रन्थ की रचना नहीं की गयी ,केवल इसे गुरु परंपरा से ही चलाया गया |

यही कारण है की इस विद्या के सांकेतिक विवरण ही मिलते हैं ,पूर्ण ज्ञान केवल गुरु द्वारा ही प्राप्त हो सकता है | इस साधना में भी बाद में कई भेद उत्पन्न हो गए | मूल भैरवी साधना कुंडलिनी जागरण की साधना है ,जिसमे काम भाव को तीब्र से तीब्रतर करके मूलाधार का जागरण और तदुपरांत ऊर्जा को उर्ध्वमुखी करते हुए अन्य चक्रों का भेदन किया जाता है | इसकी अपनी गोपनीय विधियाँ हैं |इस मार्ग में बाद में अपने अनुसार परिवर्तन किये गए |कुछ मार्ग पंचमकार का सेवन करते हुए मैथुनोपरांत वीर्य -रज को शक्ति को समर्पित करने लगे | यह अति भावुकता का मार्ग था जिसमे देवी को सब समर्पित किया जाने लगा | कुछ में अन्य विधियाँ भी अपनाई जाने लगी |सात्विक मार्ग में कन्याओं का पूजन ,किसी मार्ग में योनी पूजन मात्र आदि अनेक मार्ग विकसित हुए |

जबकि मूल भैरवी साधना काम शक्ति को तीब्रतर करके शक्ति प्राप्त करने की थी और उसमे स्खलन की सख्त मनाही है ,क्योकि स्खलन होने ही शक्ति का क्षय हो जाता है जबकि वह सम्बंधित चक्र को न भेद पाया हो | अतः एक निश्चित लक्ष्य तक इसमें स्खलन की सख्त मनाही है | इसी तरह इसमें कुछ ऐसी बातें भी सामने आने लगी की इसका नाम और स्वरुप बदनाम हो गया | भैरवी साधना के नाम पर कुछ शोषण की घटनाएँ भी दिखी ,जबकि मूल साधना परम पवित्र और शिव-शक्ति की प्राप्ति का मार्ग है और उसका उद्देश्य मोक्ष है |