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पितृदोष का मनुष्य जीवन पर प्रभाव
Dosh Nivaran

पितृदोष का मनुष्य जीवन पर प्रभाव 

वैदिक एव सनातनी परम्परा में मनुष्य के जन्म के साथ ही उसके परिवार समाज एवं स्वयं के प्रति कर्तव्यों का निर्धारण किया गया है जिसे ऋणानुबंध कहते हैं। जिन आस्तिकों का पुनर्जन्म एवं कर्मफलों में विश्वास है इस लेख को उन्ही के लिए लिखा जा रहा है ये सम्पूर्ण जानकारी शास्त्रीय एवं व्यावहारिक जीवन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देखने मे या अनुभव में आती है अतः केवल ज्ञानार्जन के उद्देश्य से ही इसे आगे पढ़ें क्योकि पितृदोष के बारे में सुनते ही अधिकांश लोगों के मन में अजीब किस्म की उथल-पुथल मच जाती है पूर्व में ही बताया जा चुका है कि प्रारब्धवश सम्पर्क में आने वाले या साथ रहने वाले सभी मनुष्यो से हमारा ऋणानुबन्ध का सम्बन्ध रहता ही हैं अतः जीवन में पितृदोष मनुष्यों की जन्म पत्रिका में किसी न किसी रूप में होता है

एक पक्ष यह है कि पूरे विश्व में ऐसा कोई परिवार नहीं है जहां किसी मनुष्य की असमय मृत्यु, आकस्मिक दुर्घटना से मृत्यु या फिर किसी व्यक्ति के द्वारा हत्या अथवा आत्महत्या ना हुई हो ऐसी मृत्यु को अकाल मृत्यु भी कहते हैं अगर किसी मनुष्य की अकाल मृत्यु हुई है तो उस मृत मनुष्य की आत्मा प्रेतात्मा कहलाती है और तब तक अपने परिवार वालों के आसपास बने रहती है जब तक उस आत्मा को मोक्ष ना मिल जाए हमारे देश में ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से मनुष्य को पूर्ण आयु 80 से 100 वर्ष मानी गई है परंतु मनुष्य की मृत्यु पूर्व जन्मों के पाप या पुण्य स्वरूप या फिर इस जन्म के कर्मों के आधार पर पहले भी हो सकती है हमारे ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार मृत मनुष्य की प्रेत योनि की आयु 1000 वर्ष से 1500वर्ष तक होती है परंतु पूर्व जन्म के आधार पर तथा इस जन्म के कुछ अच्छे कर्म किए हो तो अकाल मृत्यु के बाद परिवार जन द्वारा यदि पितृदोष की विधि विधान से शांति करवाने पर असमय मृत्यु को प्राप्त मनुष्य की आत्मा को या तो मोक्ष मिल जाता है या फिर आत्मा समयानुसार पुर्नजन्म लेती है और जन्म लेने के पहले तक उन्हें सब कुछ याद रहता भी है अच्छी आत्माएं लाभ और सुख देती हैं और अतृप्त आत्मा द्वारा दुख और कष्ट पहुँचाकर भी अपनी ऊर्ध्वगति के लिए आभास दिया जाता है।

ऐसी आत्माएं कभी-कभी अदृश्य रूप से अपनी उपस्थिति का अहसास भी करवाती है कभी-कभी आत्माएं किसी भी व्यक्ति के शरीर में अथवा परिवार के किसी भी सदस्य के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं और अपना नाम अपनी पहचान प्रकट होकर बताती हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करवाती हैं अथवा आशीर्वाद प्रदान करती है इनमें से कुछ आत्माएं भलाई के कार्य करती हैं परिवार में आत्माओं के आवेश के समय प्राय विशेष भीड़ जमा हो जाती है और वह आत्मा हर किसी के कष्टों का निवारण करती है और जो दिवंगत परिजन अधोगति में होते हैं तो परिवार में निम्न लक्षण प्रकट हो सकते हैं जैसे कि परिवार के किसी सदस्य का मानसिक संतुलन बिगड़ जाना अथवा पागलपन या आर्थिक कार्यो व मनचाहे कार्यों में रुकावट आना अथवा मानसिक चिंताओं से परिवार का घिरे रहना तथा परिवार के लोगों का बिखराव शुरू हो जाना या परिवार के सदस्यों का हर वक्त एक अनजाने भय से डरते रहना हर वक्त एक अजीब प्रकार की बेचैनी से ग्रसित रहना तथा शरीर में भारीपन रहना घर में अथवा किसी भी कार्य में मन नहीं लगना इत्यादि यह प्रेत आत्माएं वायु के रूप में रहती हैं कभी-कभी यह छाया का रूप में रहती हैं।

कृष्ण पक्ष में यह आत्माएं अति बलिष्ठ रहती है पितृदोष कई प्रकार के होते हैं जैसे छाया दोष में आत्मा का अदृश्य रूप से अपने परिवार के साथ रहना और अनहोनी घटना से अपनी उपस्थिति का एहसास करवाना परिवार की ऐसी सभी परेशानियां पीढ़ी दर पीढ़ी चला करती हैं उनमें किसी वस्तु विशेष का प्रयोग करना निषेध रहता है जैसे कि किसी परिवार में होली,दीपावली या रक्षाबंधन जैसे त्यौहार पर किसी मनुष्य की मृत्यु हुई है तो उस परिवार में यह त्यौहार नहीं मनाया जाता हैं सभी अतृप्त आत्माए अपने परिवारजनो से मोक्ष की या ऊर्ध्वगति की कामना करती हैं पितृदोष के कारण परिवार में सभी प्रकार की सुख-सुविधा होने के बावजूद मानसिक, शारीरिक अशांति बनी रहती है या फिर एक अनजाना सा भय बना रहता है आकस्मिक घटनाओं का घटित होना अथवा किसी शुभ कार्य के आयोजन के वक्त अचानक क्लेश का वातावरण बन जाना इत्यादि पितृदोष में ही आता है इसलिए यदि उपर्युक्त कोई भी लक्षण किसी को प्रत्यक्ष या परोक्ष अनुभव में आते रहते हो तो व्यक्ति विशेष को अपनी जन्म पत्रिका को अनुभवी ज्योतिषाचार्य को दिखाकर पितृदोष के विषय में स्पष्ट मार्गदर्शन लेना चाहिए और अगर जन्मपत्रिका में पितृदोष है तो पितृदोष का विधि विधान से उपाय करना चाहिए वैसे इसके लिए सबसे उत्तम उपाय निम्न प्रकार से है

पहला गया जाकर विधिवत पिंडदान श्राद्ध करवाना चाहिए

अथवा
दूसरा उपाय साप्ताहिक श्रीमद्भागवत का अनुष्ठान करवाना चाहिए

अथवा
तीसरा उपाय कन्यादान करना चाहिए यदि कन्यादान करना संभव ना हो तो किसी गरीब ब्राह्मण की कन्या के विवाह में अपनी सामर्थ्य के अनुसार विवाह का प्रबंधन करना चाहिए।

यदि आप ऊपर लिखे उपाय करना चाहते हैं तो उपाय करने से पहले किसी योग्य पंडित से विधि विधान के साथ संकल्प लेकर पहले पितरों के मोक्ष की कामना करें जिससे आपके पित्रों को मोक्ष मिल सके

पितृदोष का विषय अत्यंत गहन और व्यापक है और उसे इस छोटे से लेख में समेट पाना सम्भव नही था हालांकि उक्त लेख में मैंने पितृदोष के कुछ वास्तविक तथ्यों को और पितृदोष को दूर करने के कुछ वास्तविक और सटीक उपायों को बताया है अतः यदि किसी भी जातक की कुंडली के आधार पर एवं व्यक्तिगत जीवन में भी अनुभवों के आधार पर पितृदोष बनता दिखाई दे रहा है तो उन्हें उसके लिए उपयुक्त उपायों का आश्रय लेना चाहिए

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