तीसरा और आगे छठा भाव दोनों का स्वामी और कारक बुध व मंगल को माना जाएगा , यहाँ पर बुध भाई बहनों का और छठे भ्हाव में बंधू बांधवों का जो इए वे भी भाई बहनों के रूप में हमारे सामने आते हैं का कारक बन जाता है दूसरा है
मंगल तो इन दोनों ग्रहों की इसलिए स्वामित्व मिला के बुध रुपी लचकता व जुबान से और पराक्रम से ही हम बंधुयों के साथ इंटरैक्ट करते हैं , बुध यानी जुबान का उचित प्रयोग ही हमें सबका मित्र या शत्रु बनाता है और सही व पॉजिटिव मंगल रुपी साहस और पराक्रम हमें विजयी बनाता है ! इस के साथ हम इनके दुसरे भाव यानि छठे भाव को भी देखें के जो की शत्रुता व रोग और ऋण का स्वामी होता है उस संधर्भ में हम देखते हैं के दोनों ग्रहों का सही तालमेल हमें विजेता बनाता है , शत्रु का यहाँ लॉजिकल मतलव जीवन रुपी संघर्ष से है तो यहाँ हम देखते हैं के कैसे वही दोनों गृह उन चीजों का सही रूप में निपटारा करते नज़र आते हैं, और कैसे दो धारी तलवार की तरह बन जाते ह