हनुमान चालीसा में एक पंक्ति है।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
तुलसीदास जी ने बिल्कुल सत्य कहा है।
दरअसल हमारे शास्त्र और ग्रन्थ कोई इतिहास या रटने वाली चीज़ नही है। यह साधना करते समय मार्गदर्शन लेने के लिए है।
यहां हनुमान चालीसा की पंक्ति में जो अर्थ तुलसीदास जी कहते है वो यह है –
सत का अर्थ सत्य होता है। परन्तु लोगो ने इसको सात ले लिया और सौ ले लिया। परन्तु यहाँ तुलसीदास जी सत का अर्थ “सत्य” से कहते है।
“बार” का अर्थ यहाँ “आवृत्ति” से है।
अब देखो, इस पंक्ति का कितना गजब अर्थ आया है।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
अर्थात जो व्यक्ति सत्य की आवृत्ति होने तक इसका पाठ करता है अर्थात सत्य की प्राप्ति होने तक इसका पाठ करता है, वह भवबन्धन से पार होकर महासुख को प्राप्त करता है। यहाँ सुख नही बल्कि महासुख मिल रहा है।
अब देखो, कितना अच्छा अर्थ है। सत्य की आवृत्ति तक पाठ करना है। आवृत्ति का अर्थ अंग्रेजी में फ्रीक्वेंसी भी है। सत्य की फ्रीक्वेंसी के साथ जब तक नही मिलते तब तक पाठ करते रहो। जैसे सत्य के साथ आवृत्ति हुई तो बस, कष्ट मिट गया, दुख घट गया, तुम जीत गए और सागर को पार कर लिया।