कैलाश संहिता में ओंकार के महत्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है। गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।
क्या कहती है शिव महापुराण की वायु संहिता (पूर्व और उत्तर भाग)।इस संहिता के दो भाग हैं। पूर्व और उत्तर। इन दोनों भागों में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान है। जिसकी प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्व समझाया गया है। शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं।
शिव के ‘निर्गुण’ और ‘सगुण’ रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं। इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं।>
> जिस प्रकार ‘अग्नि तत्व’ और ‘जल तत्व’ को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है। उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रमुख विषय है।