आपने कुंडली के ऐसे योगों के बारे में जरुर सुना होगा जिनमें व्यक्ति राजा तक बन जाता है। निर्धन व्यक्ति भी धनवान बन जाता है। ऐसे योग भी जरुर देखें होंगें जिनमें रातों रात जातक प्रसिद्धि पा जाते हैं। मंझे हुए कलाकार बन जाते हैं। या फिर एक सरकारी नौकरी पाकर एक सुरक्षित जीवन व्यतीत करते हैं लेकिन कुछ ऐसे योग भी हैं जिन्हें योग की बजाय दोष कहना उचित होता है। ऐसा ही एक योग है केमद्रुम योग।
केमद्रुम योग वाले जातक जीवन में निर्धनता के लिये अभिशप्त होते हैं। कुछ जातकों की कुंडली में तो यह इतना प्रबल हो सकता है कि उनकी मृत्यु के बाद अत्येंष्टि तक में भारी दिक्कतें आती हैं। आइये जानते हैं यह केमद्रुम योग और किन परिस्थितियों में बनता है यह अशुभ फल दायी और कब इसमें मिल सकते हैं शुभ फल?
कब बनता है केमद्रुम योग
जब जातक की कुंडली में चंद्रमा अकेला हो और उसके अगल-बगल अन्य भावों में कोई ग्रह न हो तो इस स्थिति में केमद्रुम योग बनता है। लेकिन इसी स्थिति में जब चंद्रमा पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़ रही हो और वह स्वयं नीच का हो, पापी व क्रूर ग्रह उसे देख रहे हों तो यह बहुत ही अशुभ फल देने वाला योग बन जाता है। इस तरह के योग में जन्में जातक को दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर होना पड़ता है। कई बार तो भीख मांगकर जीवन यापन करने तक की नौबत जातक पर आन पड़ती है अन्यथा तंगहाली में तो उसे बशर करना ही पड़ता है।
हालांकि कुछ ज्योतिषाचार्य मानते हैं कि जब चंद्रमा के आगे पीछे के भावों में शुभ ग्रह न हों या चंद्रमा से दूसरे और द्वादश भाव में कोई भी ग्रह न हो तो इस स्थिति में बनने वाले केमद्रुम योग के अशुभ प्रभावों को कुछ उपायों से कम किया जा सकता है। यह योग दरअसल व्यक्ति को जीवन में संघर्ष करने की क्षमता एवं ताकत प्रदान करने वाला हो सकता है। कुछ उपायों को अपनाकर जातक भाग्य का निर्माण कर सकता है। लेकिन यह तय है कि इस योग में उत्पन्न हुये जातक को दरिद्रता का दंश झेलना पड़ता है, उसे वैवाहिक और संतान पक्ष का सुख भी प्राप्त नहीं हो पाता। परिजनों को भी ऐसे जातक का सुख नहीं मिल पाता, कुछ जातकों के स्वभाव में तो हद दर्जे की धृष्टता भी मिलती है।
भंग भी हो जाता है केमद्रुम योग
ज्योतिष शास्त्र में कुछ भी असंभव नहीं है और बात अगर भाग्य की हो तो कहा जाता है कि किसी का भाग्य पलटने में देर नहीं लगती। ऐसा ही केमद्रुम योग के बारे में भी है। कुछ ऐसी विशेष दशाएं भी जातक की कुंडली में बनती हैं जिनमें केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं बल्कि कई बार तो तो बिल्कुल समाप्त होकर शुभ फल देने वाले हो जाते हैं।
ऐसा तब होता है जब कुंडली में लग्न से केंद्र में चंद्रमा या कोई ग्रह हो तो केमद्रुम अप्रभावी हो जाता है। चंद्रमा सभी ग्रहों से दृष्ट हो या चंद्रमा शुभ स्थान में हो या चंद्रमा के शुभ ग्रहों से युक्त हो या फि पूर्ण चंद्रमा लग्न में हो अथवा दसवें भाव में उच्च का हो अन्यथा केंद्र में पूर्ण बली हो तो भी केमद्रुम योग भंग हो जाता है। सुनफा अनफा या दुरुधरा योग यदि कुंडली में बन रहे हों तो भी केमद्रुम योग भंग माना जाता है। चंद्रमा से केंद्र में अन्य ग्रह के होने पर भी केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव भंग हो जाते हैं।
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