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कुंडली से इष्ट देव जानने का सूत्र

By pavan

January 31, 2021

किसी जातक की कुंडली से इष्ट देव जानने के अलग अलग सूत्र व सिद्धांत समय समय पर ऋषि मुनियों ने बताये व सम्पादित किये हैं। जेमिनी सूत्र के रचयिता महर्षि जेमिनी इष्टदेव के निर्धारण में आत्मकारक ग्रह की भूमिका को सबसे अधिक मह्त्व्यपूर्ण बताया है। कुंडली में लगना, लग्नेश, लग्न नक्षत्र के स्वामी एवं ग्रह जों सबसे अधिक अंश में हो चाहे किसी भी राशि में हो आत्मकारक ग्रह होता है।

इष्ट देव कैसे चुने?

अपना इष्ट देव चुनने में निम्न बातों का ध्यान देना चाहिए। -आत्मकारक ग्रह के अनुसार ही इष्ट देव का निर्धारण व उनकी अराधना करनी चाहिए। -अन्य मतानुसार पंचम भाव, पंचमेश व पंचम में स्थित बलि ग्रह या ग्रहों के अनुसार ही इष्ट देव का निर्धारण व अराधना करें। -त्रिकोणेश में सर्वाधिक बलि ग्रह के अनुसार भी इष्टदेव का चयन कर सकते हैं और उसी अनुसार उनकी अराधना करें।

ग्रह अनुसार देवी देवता का ज्ञान सूर्य-राम व विष्णु चन्द्र-शिव, पार्वती, कृष्ण मंगल-हनुमान, कार्तिकेय, स्कन्द, नरसिंग बुध-गणेश, दुर्गा, भगवान् बुद्ध वृहस्पति-विष्णु, ब्रह्मा, वामन शुक्र-परशुराम, लक्ष्मी शनि-भैरव, यम, कुर्म, हनुमान राहु-सरस्वती, शेषनाग केतु-गणेश व मत्स्य इस प्रकार अपने इष्ट देव का चयन करने के उपरांत किसी भी जातक को उनकी पूजा अराधना करनी चाहिए तथा उसके बाद भी आपको धर्मीं कार्य, अनुष्ठान, जाप, दान आदि निरंतर करते रहना चाहिए। आप इन्हें किसी भी परिस्थिति में ना त्यागें। अपने इष्ट देव का निर्धारण कर यदि आप नियमित पूजा अराधना करते हैं तो आपको आपने पूर्वजन्म कृत पापों से मुक्ति मिलने में सहायता हो जाती है।