संसार में भगवान को किसी ने देखा नहीं है। लेकिन लोग फिर भी उनमें आस्था रखते हैं। यही बात जब प्रेत आत्माओं के बारे में कही जाती है तो लोग दो भागों में बंट जाते हैं। अब जिन्होंने महसूस किया होगा तो वे इन बातों में विश्वास करते हैं। जिन्होंने नहीं देखा होता तो वे इसे एक भरम से ज्यादा कुछ नहीं मानते हैं। प्रेत दोष के बारे में आज हम अपने इस लेख में विचार करेंगे और उनसे बचने के कुछ उपाय भी आपको बताएंगे, जिन्हें अपनाकर आप काफी मुश्किलों से बच सकते हैं।
मनुष्य ने आधुनिक युग में, आधुनिक तरीकों से ये साबित किया कि कुछ अदृश्य आत्माएं होती हैं। जिनको हम पैरानॉर्मल क्रियाओं के नाम से जानते हैं। ये अदृश्य आत्माएं या प्रेतात्मा किसी भी इंसान के जीवन को प्रभावित कर सकती है। ये व्यक्ति को डरा धमका के उसके जीवन को नकारात्मक ऊर्जा से भर सकते हैं। उसकी मानसिक और शारीरिक शक्ति को छीण करके उसे रोगी बना सकती है। उनकी जिंदगी को तहस नहस करके नरक के समान बना सकते हैं। किसी व्यक्ति के जीवन में जब इस तरह कि घटनाएं घटित होती है, तो उसका मुख्य कारण कुंडली में प्रेत दोष होना हो सकता है।
क्या है प्रेत दोष?
किसी मनुष्य के शरीर में किसी भूत या प्रेत के साये का पड़ जाना ही प्रेत दोष अथवा प्रेत योग कहलाता है। इस योग के कारण व्यक्ति को बहुत से मानसिक और शारीरिक कष्ट झेलने पड़ सकते हैं। यह परेशानियां सिर्फ उस व्यक्ति को ही नहीं अपितु उसके परिवार के किसी भी सदस्य को भी भुगतना पड़ सकता है। इस योग में मनुष्य के शरीर में कुछ अदृश्य ताकतें घुस जाती हैं या कब्ज़ा कर लेती हैं। इसके बाद यह कुरुर शक्तियाँ पीड़ित व्यक्ति को कई तरह से प्रताड़ित करती हैं। उस व्यक्ति को काफी असहनीय दर्द या पीड़ा के दौर से गुजरना पड़ सकता है। सही समय पर सही उपचार नहीं होने पर इसका परिणाम नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है।
प्रेत दोष के प्रभाव
- अपने और परिवार के किसी भी व्यक्ति को चोट पहुँचा सकता है।
- दिमाग पूरी तरह से संतुलन खो सकता है।
- नकारात्मकता को आकर्षित करता है।
- असामान्य और अजीब व्यवहार करता है।
- बेहद शक्तिशाली और हिंसक हो जाता है।
- अचानक चिल्लाना शुरू कर देता है।
- नियंत्रण से बाहर हो जाता है।
- कठोर और अशिष्ट व्यवहार करता है।
- तेजी से लम्बी साँस लेता है।
- भूख और प्यास से रहित हो जाता है।
कुंडली में प्रेत बाधा की पहचान
- कुंडली में प्रथम भाव में चन्द्र के साथ राहु की युति होने पर एवं पंचम और नवम भाव में कोई क्रूर ग्रह स्थित हो तो उस जातक पर भूत-प्रेत, पिशाच या बुरी आत्माओं का प्रभाव रहता है। इसके अलावा गोचर के दौरान भी यही स्थिति रहने पर प्रेत बाधा से पीडित होना निश्चित है।
- यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं।
- यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है।
- ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से 6, 8 या 12 वें भाव में बलहीन हो, तो व्यक्ति प्रेत बाधा दोष से पीड़ित होता है।