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इस तरह मनाया जाता है नवरात्रि का पावन पर्व
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इस तरह मनाया जाता है नवरात्रि का पावन पर्व 

नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ दुर्गा के लाखों भक्त उनकी हृदय से पूजा-आराधना करते हैं। ताकि उन्हें उनकी श्रद्धा का फल माँ के आशीर्वाद के रूप में मिल सके। नवरात्रि के दौरान माँ के भक्त अपने घरों में का माँ का दरवार सजाते हैं। उसमें माता के विभिन्न रूपों की प्रतिमा या चित्र को रखा जाता है। नवरात्रि के दसवें दिन माँ की प्रतिमा को बड़ी धूमधाम के साथ जल में प्रवाह करते हैं।

Navaratri Celebrations, 9 nights of Devi - Amma, Mata Amritanandamayi Devi

पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला की प्रथा चलती है। जिसमें महिलाएँ एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। गुजरात में गरबा नृत्य का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोग डांडिया नृत्य करते हैं। उत्तर भारत में नवरात्रि के समय जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है और दसवें दिन रावण के बड़े-बड़े पुतले बनाकर उन्हें फूंका जाता है।

नवरात्रि से संबंधित पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि महिषासुर नामक राक्षस ब्रह्मा जी का बड़ा भक्त था। उसकी भक्ति को देखकर शृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गए और उसे यह वरदान दे दिया कि कोई देव, दानव या पुरुष उसे मार नहीं पाएगा। इस वरदान को पाकर महिषासुर के अंदर अहंकार की ज्वाला भड़क उठी। वह तीनों लोकों में अपना आतंक मचाने लगा।

इस बात से तंग आकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ सभी देवताओं ने मिलकर माँ शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। कहते हैं कि माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को अच्छाई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

एक दूसरी कथा के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शक्ति की देवी माँ भगवती की आराधना की थी। उन्होंने नौ दिनों तक माता की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ स्वयं उनके सामने प्रकट हो गईं। उन्होंने श्रीराम को विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन भगवान राम ने अधर्मी रावण को परास्त कर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। इस दिन को विजय दशमी के रूप में जाना जाता है।

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